Thursday, October 9, 2014

4 oct ........125 करोड़ wilder beasts

याद है जापान की सुनामी .तबाही का ऐसा भयानक मंजर मैंने अपनी ज़िन्दगी में नहीं देखा . इतनी बड़ी आपदा आयी . सब कुछ बर्बाद हो गया . पर उस आपदा में भी जापानियों का व्यवहार देखने लायक था . उन दिनों फेस बुक ऐसी पोस्ट्स से भरा हुआ था की जापानी संकट में कैसे व्यवहार करते हैं ........हर जापानी को पता है की किस संकट में क्या करना है ...भूकंप आये तो क्या करना है , सुनामी आये तो क्या करना है ? कहाँ भागना है ....शायद ये भी बताया जाता है की भागना नहीं है ........कैसे बचना है ....पहले बुज़ुर्ग निकलेंगे फिर बच्चे और महिलाएं ....... जापानियों को यह भी सिखाया जाता है की विपत्ति के समय सिर्फ और सिर्फ एक समय का भोजन ही एकत्र करना है ....और ये की बिकुल भी रोना , चीखना चिल्लाना या उत्तेजित नहीं होना है ......पैनिक नहीं होना है .......डरना नहीं है .......
हिन्दुस्तान आज तक अपने लोगों को ट्रेन में चढ़ना नहीं सिखा पाया ....ट्रेन रुकते ही टूट पड़ते हैं .......रोजाना भगदड़ के समाचार आने लगे हैं ......... अफवाह फैलने पे नमक जैसी चीज़ की भी hoarding करने लगते हैं ........ जिस मुल्क को आज तक थूकना हगना मूतना नहीं आया वो सुनामी और भूकंप में क्या करेगा .......
मोदी जी .....125 करोड़ wilder beasts का मुल्क हो गया ....... सबसे पहले पढ़ा लिखा के आदमी बनाओ भैया ...छोडो मंगल यान .......पहले हमको उठाना बैठना चलना , हगना, मूतना , थूकना , सड़क पार करना , कूड़ा फेंकना सिखाओ .......
नहीं तो रोजाना यूँ ही एक दुसरे को कुचलेंगे .....भगदड़ में मरेंगे .........

3 october...............किताबों की दूकान में भी भगदड़ मचती ..........

गाँधी मैदान में मेला देखने गए थे . क्या मिलता है सालों को इन मेलों में ? गए हैं कभी आप ? गंदे घटिया unhygienic से स्टाल होते हैं गोलगप्पों के , पकोड़े और गन्दी घटिया जलेबियों के , और पटरी पे बिकने वाला घटिया सामान 5-5 रु वाला ........ भीड़ भक्खड , धूल और गर्दो गुबार ........ क्या घटिया स्तर है यार, लोगों के एंटरटेनमेंट का .......क्या लेने जाते हैं इन मेलों में ....जान देने लोगों के पैरों तले कुचल के .....भगदड़ में ........
और ये साले शहरी लौंडे .....साले अगरबत्ती छाप cool dudes ....वो जिनकी jeans बस गिर ही जाना चाहती है सरक के , और ये छिछोरी लडकियां .....घूमने चल देते हैं मॉल में ? क्या है क्या इन malls में ? दूकान सजी है , महंगे सामान से , जिसे सिर्फ देख के, निहार के चले आते है ........ ललचाई निगाहों से ...... window shopping कहते हैं उसे शायद ........ कितना घटिया स्तर है एंटरटेनमेंट का .........
जहां भी देखता हूँ किताबों की कोई दुकान , ठिठक जाता हूँ ......और कितनी भी जल्दी में क्यों न हूँ ....... एक बार रुक के देख ही लेता हूँ , सड़क की फुटपाथ पे सजी दुकान पुरानी second hand किताबों की ......... और घंटों बिता देता हूँ किताबों की दुकानों में , उन्हें निहारता , छूता , देखता सहलाता और पलटता ......... कमबख्त आजकल पॉलिथीन की पन्नी में लपेट देते हैं ...........और वो मादक सी गंध किताबों की, जो आती है इन दुकानों में, किताबों की ...... मेरी बीवी बच्चों से कहती है ,सनकी है तुम्हारा बाप .....पता नहीं क्या मज़ा आता है इसे किताबों की दूकान में .......
काश ........... कभी किताबों की दूकान में भी भगदड़ मचती ..........

6 oct .........छौंकी हुई दाल

बहुत साल पहले जब हमारे परिवार में अलगा गुजारी हुई तो हमारे पिता जी ने पुश्तैनी घर में हिस्सा न लिया और घर के बगल में पड़े खाली प्लाट में ही नया घर बनाया ........... सो उस प्लाट के पीछे एक कुम्हार परिवार रहा करता था ......उस जमाने में जब जमींदारी थी और ज़मीनें इफरात होती थी तो बाबू साहब लोग " परजा परजुनिया " को वहीं अगल बगल ही बसा दिया करते थे ....... सोच ये थी की वहीं अगल बगल रहेगा तो दिन रात सेवा में लगा रहेगा ....सो उस कुम्हार के दादा को हमारे दादा ने बसाया था कभी .......... प्रजा जब थी , तब थी . बाद में प्रजा अपना भूखा पेट ले कर दिल्ली बम्बई चली गयी और वहाँ खटने कमाने लगी . इधर बाबू साहब के लड़के ....... वो जिनके दरवाजे पे कभी हाथी झूमता था , वो उस हाथी का सिक्कड़ लिए घूमते थे ....... सो हमारे लौंडे सिक्कड़ घुमाते रह गए वो मेहनती लोग कमा के आगे बढ़ गए .......... सो वो कुम्हार भी कही दिल्ली मुंबई रहता कमाता था और उसके बीवी बच्चे यही गाँव में रहते थे .
तो उस दिन सुबह सुबह हमारी ताई जी और एक दो अन्य महिलाएं आयी हुई थी ......हमारे भैया ने घर के पिछवाड़े शानदार मखमली घास का लॉन बनवाया था और वहीं बैठ के " ठकुराईन " लोग चाय पी रही थी ........ बड़ा खुशनुमा माहौल था ......... गप्प चकल्लस हो रही थी ........ तभी छन्न से आवाज़ आयी ....... वो आवाज़ जी गरम तेल में प्याज डालने से आती है .........और हवा में भुने हुए जीरे की खुशबू तैरने लगी .......... " ठकुरहन " में अचानक सन्नाटा छा गया . फिर हमारी ताई जी बोलीं ....... " आज कल बड़ा छौंक के दाल बनत हौ " ................ठकुरायिनों का मूड off हो गया और चाय पार्टी आनन् फानन में बर्खास्त हो गयी ........ कुम्हारिन की दाल का छौंका ठाकुरायिनों से बर्दाश्त न हुआ .........
मैं वहीं बगल में बैठा था . बहुत देर तक सोचता रहा ........यही तो है सामंतवाद ........जो हमारी जड़ों में गहरे बैठा है आज भी ...... गरीब के घर से भुने हुए जीरे की महक बर्दाश्त न हुई ......... साल दो साल के भीतर ही हमने उस कुम्हार के परिवार को उजाड़ दिया वहाँ से जो हमारे घर के मखमल में पैबंद सा था ......... उसने वहाँ कोंहरान में अपने लोगों के बीच घर बना लिया ............
समय का चक्र पूरा हुआ ....... आज वहीं , ठीक उसी प्लाट पे जहां उस कुम्हार का टूटा हुआ घर था ....... " उदयन " शुरू होने जा रहा है ......... उसी वर्ग के बच्चों के लिए जिसे हमने एक दिन उजाड़ा था .........

6 oct ...........चचा पाकिस्तानी .....

एक चचा जान थे हमारे ....... संयुक्त परिवार था हमारा .....चचा जान को एक दिन इल्हाम हुआ की हमारे साथ नहीं रह सकते .........दादा हमारे बोले ...काहें भैया का हो गवा ? बोले बस अलग कर दो ......आप लोगों के साथ रहना बड़ा मुश्किल है ........आपके साथ न खान पान मिलता है , न रहन सहन ........इसलिए अलगा दो ...... महीनों झगडा करते रहे ........ दद्दू अलगाय दिए .......... जमीन जायदाद सब बाँट दिए .....घर में दीवार बना दिए .......बोले उस पार तुम्हारा .....जाओ .......चच्चू अपने अंडा बच्चा को डंका दिए .....दूकान दौरी खटिया मचिया जो हिस्से में आयी थी , सब ले गए .........
अगले दिन जब दद्दू सो के उठे तो देखते हैं की चाचू वहीं दलान में लुंगी पहन के दतुअन रगड़ रहे हैं ....... दद्दू बोले का हुआ ? गए नहीं ?
हम काहे जाएँ ? हमरा घर है ? हमरे बाप दादा यहीं रहते आये हम काहें जाएँ भला ? जिनगी भर एही दालान में खेले .......एही नीब पे चढ़ के दतुअन तोड़े ....... एका छोड़ के हम काहे जाएँ ?
दद्दू थे हमारे एक नंबर के चूतिया आदमी .......... चचवा इनको ज्ञान दे रहा था और ये ले रहे थे .......उलाट के मारते साले को वहीं चार लात .......भक्क्क साले ...........अब दद्दू हमको ज्ञान देते हैं ? कहाँ जाएगा बेचारा ?
अब चाचू के लड़के फिर अलापने लगे हैं ......हम साथ नहीं रह सकते ........ तुम साले आरती गाते हो तो हमको खलल पड़ता है ........माइक उतारो ...... विसर्जन मत करो .....हमको नमाज़ पढनी है .....खलल पड़ता है .
छपरा का latest दंगा इसलिए हुआ की पुलिस एवं प्रशासन ने विसर्जन रोक दिया और मूर्तियों से माइक बंद करवाया .........बोले ईद के नमाज़ में खलल पडेगा ....... दंगा हो गया .....
का चचा ?????? तब्बे इस्लामाबाद , पेशावर लाहौर , कराची चले गए होते तो ईद की नमाज़ में खलल नहीं न पड़ता ........ और दद्दू साले मर गए खलाल हमारे कपार पे छोड़ गए ........

8 अक्टूबर .........माँ जैसी प्रिंसिपल

1970 में , मैं 5 साल का था . सिकंदराबाद के किसी cantt में रहते थे . वहाँ त्रिमलगिरी केंद्रीय विद्यालय में मेरा एडमिशन हुआ . 5 साल का था मैं ....... उस जमाने में गर्भस्थ शिशु का स्कूल में एडमीशन कराने की परम्परा न थी और प्री नर्सरी , नर्सरी , Lkg और Ukg इत्यादि कक्षाएं न हुआ करती थी . सीधे 1st में ही जाते थे बच्चे . हमारी क्लास की जो क्लास टीचर होती थी उसके दांत बाहर को थे ...वो जिन्हें rabbit tooth कहते हैं आजकल . उस जमाने में शायद ये orthodontics का चलन न था .........उसको मेरी माँ दतखोड़ी कहती थी . सो दतखोड़ी की शक्ल मुझे आज 45 साल बाद भी याद हैं .......उस शक्ल को कौन भूल सकता है भला ?
मैं छोटा सा बच्चा ....... क्लास में अपने क्लास टीचर के पास गया , उसी दतखोड़ी के पास , वो किसी और से बात कर रही थी और मेरी तरफ उसका ध्यान न था .......न वो मेरी बात सुन रही थी ....... सो मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ खीची , ठीक वैसे ही जैसे मैं अपनी माँ की पकड़ लेता था जब वो मेरी बात नहीं सुनती थी ......और उस दतखोड़ी ने मुझे बुरी तरह झिड़क दिया ....... मैं मासूम सहम गया ........ और मुझे ज़िन्दगी का पहला lesson मिला ....तुम्हारे माँ के अलावा दुनिया की कोई औरत तुम्हारी माँ नहीं हो सकती . और इस lesson को मैंने ज़िन्दगी भर याद रखा .......
फिर जब आगे चल कर हम लोग teaching में आ गए तो तो मैंने एक उसूल बनाया ........स्कूल में हमेशा बाप बन के रहा और मोनिका को हमेशा माँ बनना सिखाया ........
आजकल यहाँ सुल्तानपुर लोधी में , वो है तो प्रिंसिपल एक स्कूल की पर बच्चे सब उसे माँ ही समझते हैं ....... चढ़े रहते हैं सिर पे ....देखते ही भाग के आते हैं और लिपट जाते हैं टांगों से ........ ऑफिस में घुसे रहते हैं कैंडी लेने के लिए ........ एक बच्चे ने अपनी माँ से शिकायत की की प्रिंसिपल अब मुझे प्यार नहीं करती .......उसकी माँ स्कूल चली आई ......मैडम प्लीज ....... दो चार चुम्मियां ले लिया करो ......कहता है की अब प्यार नहीं करती प्रिंसिपल ....... अजी अब 5 th में हो गया है ....... अब इस से कहो की बड़ा हो जाए ........
जाने क्यों प्रिंसिपल जल्लाद की इमेज बना के रखती हैं स्कूल में ....माँ बन के भी अच्छा स्कूल चलाया जा सकता है .........

8 अक्टूबर.................खरीद के लायेंगे दुल्हन आपियों कौमनष्टों के लिए ......

उत्तर प्रदेश में कैसा भी बकलोल आदमी हो , उसका भी शादी ब्याह हो ही जाता है ....... चाहे खाने पीने उठने बैठने का ठिकान न हो , शादी हो ही जाती है .......मैंने आजतक वहाँ कोई यूँ ही छडा छांट घूमता नहीं देखा .....पंजाब हरियाणा में ऐसा नहीं है ........अच्छे खासे खाते पीते ठीक ठाक लोगों को मैंने एक अदद बीवी की आस में टहलते देखा है .......हरियाणा में तो समस्या महामारी का रूप ले चुकी है .......हर गाँव में 10-20 लंगवाडे ऐसे हैं जो 35-40 के हो गए पर ब्याह न हुआ ....... सो वहाँ ऐसी agencies खुल गयी हैं जो bihar , बंगाल , उड़ीसा से लडकियां खरीद के लाते हैं और यहाँ छड़ों की शादियाँ करवाते हैं .........और ऐसे गिरोह हैं हरियाणा पंजाब में जिनमे सुन्दर सुन्दर लडकियां औरतें होती हैं , जो ऐसे ही शिकार फंसा के बाकायदा शादी करती हैं और मौक़ा मिलते ही रुपया पैसा , गहना या जो कुछ मिले ले के रफू चक्कर .......
समाज में जब मैं लोगों को अपनी बीवियों पे चुटकुले सुनाते देखता हूँ तो हंसता हूँ .....बेटा तुमको बीवी मिल गयी है इसलिए मज़ाक सूझ रहा है ....उनसे पूछो जो तरस रहे हैं ......मैं यहाँ ऐसे दो चार लोगों को जानता हूँ जो छड़े हैं ........उन्हें छुप के घंटों observe करता हूँ ....मैंने देखा की वो सड़क पे बैठे हर आती जाती औरत को ऐसे निहारते हैं ......... कहीं किसी पारिवार्रिक माहौल में हों तो देखने लायक होता है उनका व्यवहार ...उनके हाव भाव ........ उनका रोम रोम तरसता है औरत के लिए ........विरह की आग में जलते ....... ऐसे लोगों को सब लोग अवॉयड करते हैं ........कोई इन्हें किसी function में बुलाना नहीं जानता ......लाल लुग्गा देखा नहीं की लासरियाने लगे ...........और ये समाज के लिए ख़तरा भी होते हैं ...... महिलाओं की सुरक्षा के लिए ख़तरा .....क्या पता कब किसके घर में घुस जाएँ .........
कौमनष्टों और आपियों का वही हाल है .....आपियों की बीवी गहना रुपया ले के चुपके से हाथ से फिसल गयी ......... कौमनष्ट वो जिनको कभी नसीब ही न हुई ........बेचारे धधकते कोयले से आग बरसाते हैं ........ ये अब 40-45 के हो चुके ......अब इनको सत्ता सुन्दरी नसीब होगी नहीं कभी .......... खरीद के देनी पड़ेगी इनको बीवी ........
इनका कुछ जुगाड़ बनाओ भैया .......... खरीद के लाओ कहीं से ....कहीं साइड से ....कोई बंगालन उडिया सत्ता सुन्दरी ........ samar anarya जैसों को धधकते देखता हूँ तो तरस आता है .........मोदी को सत्ता सुन्दरी के साथ देख के उनसे बर्दाश्त नहीं होता ......

9 October .............कौमनष्ट watch .........communist खतरे में ......

कौमनष्ट watch .........
किसी जमाने में धरती पे एक कौम थी . धीरे धीरे वो नष्ट हो गयी ......... कुछ समाज विज्ञानियों ने समय रहते ये पहचान लिया था की ये कौम नष्ट हो जायेगी ....... इसलिए इन्होने इनके संरक्षण के प्रयास शुरू किये.......... सबसे पहले तो इनको endangered species में रखा ......... इनके पंजे गिने गए ....... इनको सरकारी खुराक पे पालना शुरू किया ......इनके लिए JNU जैसे अभयारण्य बनाए ..........अभयारण्य बोले तो sanctuary ......जहां ये निश्चिन्त हो के चर खा सकें ......... सरकार ने भी ये बेवस्था की की इनकी सुरक्षा हो ....सुरक्षा बोले तो इनको मार के कोई खाल न उतार ले .....यानि कोई इनको पटक के मारने न पाए ........
जो गिनती के कौम नष्ट बचे थे उन्हें महत्वपूर्ण पदों पे बैठाया ...मसलन इतिहासकार......... पत्रकार ........कलाकार ........ फिल्मकार .....कहने का मतलब ऐसे पदों पे बैठाया जहां ये कार नामे कर सकें .......... सरकारी संरक्षण के परिणाम जल्दी ही दिखने लगे और ये खा खा के मोटा गए ......और इनके पिछवाड़े यानी posterior cavity के इर्द गिर्द चर्बी की मोटी परत जम गयी .......... दुनिया भर में रिसर्च हुई की ये प्रजाति आखिर लुप्त क्यों हो रही है .....पाया गया की इनके DNA में ही दोष है ........
समाज में भी धीरे धीरे इनको ले के जागरूकता आई .......... लोग इनको watch करने लगे ....... नज़र रखने लगे .....क्या खाते हैं ....कहाँ रहते हैं ......इनको खुराक कहाँ से मिलती है ...... आदतें क्या हैं ....... किस खुराक से जल्दी मोटाते हैं .......
मैंने भी एक कौमनष्ट के गले में collar पहनाया है .......आजकल उसका सिग्नल उधर hongkong और नेपाल के जंगलों से मिल रहा है ........ उसके पीछे कैमरा लगा दिया है ....... सारा दिन हुआँ हुआँ करता है ...... उसकी हुआँ हुआँ पे एक साथ बहुत से शांति दूत कू कू भौ भौ करते हैं ........ इधर देखा गया है की उसकी हर आवाज़ पे शांति के पुजारी ज़्यादा बोलते हैं .......
मेरा कैमरा लगा है पीछे ....उसपे कड़ी नज़र है ....... सारी रिपोर्ट देता रहूँगा .....आप लोग भी नज़र रखिये ...........
क्रमशः ...............




कौमनष्ट watch .........
जिस कौमनष्ट को हमने पट्टा पहनाया था , वो घूमता चरता उधर पकिस्तान बॉर्डर पे चला गया .... वहाँ बड़ा धूम धडाका था ...धांय धांय थी ........ कौम नष्ट धूम धडाके में पतला गोबर छेरने लगता है ....... कौम नष्ट मोदी जी मोदी जी करता भगा जो बॉर्डर से ....छिपने की जगह न मिली ........ मोदी जी के 56 साइज़ छाती के पीछे छिपने के जगह खोजता रहा बेचारा .........
कौमनष्ट बोला मोदी जी ...... बॉर्डर पार के लिए 56 इंच की छाती नहीं 57 MM की तोप चाहिए ...... मोदी बोले .....बेटा कौमनष्ट ..... तोप हथियार सब है ....... और सुनो हमारा हथियार की लम्बाई mm में नहीं इंच में है ....... और सुनो कौमनष्ट .......हथियार सबके पास होते हैं .......पर मारने के लिए कलेजा चाहिए बेटा छाती में ............समझे ? बोलो तो निकालूँ ? बिना तेल लगाए मारूंगा .......
और मोदी ने निकाला जो हथियार ......तो कौमनष्ट चला भाग ....... कौमनष्ट भगा तो जा के रुका hongkong .....उधर पकिस्तान भगा तो सुना है की UN गया है ........ दोनों पतला गोबर छेर रहे हैं ....

9 अक्टूबर .........खाली कैनवास

जालंधर के एक उद्योगपति हैं ........ उन्होंने एक स्कूल खोल दिया ....... उद्योगपति का एक mindset होता है ...... वो पूँजी लगाता है .....लेबर खटाता है और माल बनाता है ...... फिर उस माल को मार्किट में खपा देता है ......सो जनाब मूलतः उद्योगपति थे , सो उन्होंने पूंजी लगाई ........ teachers को लेबर की तरह खटाने लगे ......... आजकल ज़्यादातर प्राइवेट स्कूलों में teachers को लेबर की तरह खटाया जा रहा है ......... वैसे हिन्दुस्तानी लेबर तो फिर भी बड़े प्यार से मजे मजे से खटती है ....सुस्ता लिया ....बीड़ी पी ली ....फिर चाय पी ली ...उसके बाद सुरती रगड़ ली ........ England अमेरिका और china में लेबर खटाने के किस्से सुन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं ....... वहाँ लेबर ऐसे खटती है जैसे robot हो .......
प्राइवेट स्कूल की टीचर को आजकल एकदम Chinese लेबर की तरह खटाया जा रहा है ........ यूँ जैसे conveyor belt पे खडा हो .......सांस भी न लेने पाए ...... मेरे एक मित्र की पत्नी Cambridge international School दसूहा में पढ़ाती थी ....... स्कूल की प्रिंसिपल और मैनेजमेंट का रवैया बिलकुल उद्योगपतियों वाला था ....... टीचर को बिलकुल मशीन बना दिया गया था ........सारे टीचर्स जालंधर से दसूहा स्कूल बस से जाती थीं ......एक घंटे का सफ़र होता .....ज़्यादातर रास्ते भर कॉपी check करती जाती थी .....6 महीने में उनकी ये हालत हो गयी की मुझे लगा , पगला जायेंगी ......वो इतनी ज़्यादा frustrate हो गयी की अकेले में रोती थी .....क्लास में बच्चों पे खीज उतारती ........ एक दिन मुझे कहने लगीं , मेरा मन करता है कि मैं क्लास में बच्चों को गिरा के उनके बाल नोच नोच के उन्हें पटक के मारूं ......... मेरी पत्नी सामने बैठी बड़े गौर से सुन रही थी ........ मैंने उन्हें तुरंत नौकरी छोड़ देने की सलाह दी .....उन्होंने 15 दिन बाद इस्तीफा दे दिया ...........
स्कूल कोई factory नहीं है .... और बच्चे conveyor belt पे चलता कोई product नहीं ....... और टीचर कोई लेबर नहीं होता ........teaching is an art .........और हर टीचर एक artist होता है ........ और बच्चा एक खाली कैनवास ........ स्कूल को फैक्ट्री मत बनाओ ........ टीचर को कलाकार ही रहने दो ...... 70 -80 के दशक में सैदपुर के Town National Intermediate College में हिंदी के प्राध्यापक थे बाबू हरषु प्रसाद सिंह ....जीवन में कभी absent नहीं हुए स्कूल से ........न कभी कोई क्लास मिस की .......बारहवीं क्लास को हिंदी पढ़ाते थी ......साल भर में पहले lesson का डेढ़ पन्ना पढाये ........ उनके प्रिंसिपल ने भी कभी नहीं पूछा की syllabus कितना हुआ ? यूँ बताया जाता है की हरषु प्रसाद की उस क्लास का हर लड़का हिंदी का मूर्धन्य विद्वान् हुआ और अभी हाल ही में उनके students का एक get together हुआ अपने गुरु जी को श्रद्धांजलि देने के लिए .......उनमे से ज़्यादातर हिंदी के लेखक , कवि , professors और डिग्री college के principals थे .......... हरषु प्रसाद सिंह किसी फैक्ट्री के लेबर न हुए ......... कलाकार थे .....उन्होंने जो बनायी वो कलाकृतियाँ थीं ......
मोनिका जो स्कूल चलाती हैं , कोशिश करती हैं की फैक्ट्री न बने ......... और टीचर्स लेबर न बनें ...... हालांकि व्यापारिक मजबूरियाँ होती हैं फिर भी सामंजस्य बैठाती हैं ......... टीचर्स को कलाकार बनाने की कोशिश करती हैं .........
10 साल के अंतराल के बाद अब फिर से teaching में घुसने जा रहा हूँ ....... " उदयन " के माध्यम से ........... कोई व्यापारिक दबाव भी न होगा ........ देखें क्या कलाकृतियाँ बनती हैं इस बार ..........बच्चों का क्या है ...वो तो खाली कैनवास होते हैं .........

9 september .........तीसरी बेटी

सच्ची कहानी है .....वो तीन बहनें थीं . सबसे बड़ी और सबसे छोटी को मैं जानता हूँ ........बीच वाली कभी मिली नहीं . सबसे छोटा यानि चौथा भाई था .मेरी ख़ास सहेली यूँ बडकी थी . वही रो रो के सब किस्से सुनाया करती थी . बाप एयरफोर्स में था . पहली बेटी हो गयी . चूँकि बेटी थी इसलिए कभी गोद में उठाया ही नहीं . कभी पुचकारा ही हो ये भी याद नहीं ........ फिर दूसरी भी बेटी हो गयी
मैं बहुत छोटी थी जब वो हुई .......कुछ याद नहीं पर जब वो दूसरी लगभग दो साल की थी तो मैं चार साल की थी ....तब की धुंधली धुंधली कुछ यादें हैं ......... फिर जब तीसरी हुई तो मुझे अच्छी तरह याद है ........ कोहराम मच गया था घर में ......यूँ बताते हैं की दादी दहाड़ें मार मार के रोई थी ...... फौजियों के बच्चे आम तौर पे मिलिट्री हॉस्पिटल में पैदा होते हैं ...........मुझे याद है जब माँ छुटकी को घर ले के आयी तो पिता जी ने माँ को वहीं घर के दरवाजे पे ही कस के झापड़ मारा ............ जब कभी उन्हें घर से निकलना होता तो हम लड़कियों को सख्त हिदायत थी की उनके सामने नहीं पड़ना है “ मुझे इनकी मनहूस शक्ल दिखनी नहीं चाहिए “ फिर तीन चार साल बाद चौथा लड़का हुआ .......
उसके बाद घर का माहौल बदल गया ....... कम से कम ये हुआ की हम लड़कियों के खिलाफ जो तल्खी रहा करती थी वो कम हो गयी ........ और हमारे घर भैया हुआ था ....हम तीनों फुदकती फिरती थीं मोहल्ले भर .....जब पता चला तो सबको जा के बता आयीं खुशी खुशी ......... हमारे घर भैया हुआ ....... जब वो छोटा था तो उसे दिन भर गोदी में लादे घूमतीं ......खिलौना था हमारे लिए तो ........फौजियों के बच्चों को एक खुशनसीबी होती है ....केंद्रीय विद्यालयों के कारण शिक्षा दीक्षा अच्छी हो जाती है ........ सो हम तीनों भी पढ़ गयीं भाग्य से ......एयरफोर्स स्टेशन में था इसलिए भाग्य से KV भी अच्छा था .......
बडकी की शादी सबसे पहले हुई गाजीपुर के एक Phd से ...संस्कृत से था ...डॉ साहब .....बाद में पता चला की किसी college में adhoc पे था और 400 रु पाता था .....ये किसी तरह प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा के परिवार चलाती थी .......मझली MA Bed कर के सरकारी स्कूल में मस्टराइन हो गयी .......छुटकी सबसे तेज निकली ....... उसने Msc किया और DRDO ग्वालियर में scientist लग गयी ...वहीं एक अग्रवाल लड़के से परिचय हुआ और जब घर वाले न माने तो उसी से शादी कर ली ........... बाद में दोनों पति पत्नी किसी स्कालरशिप पे लन्दन चले गए और वहीं सेटल हो गए .........
बडकी सबसे पहले जब घर से बाहर निकली तो मेरे स्कूल में आयी थी पढ़ाने ...दो महीने रही फिर बनारस में उसे हमसे बेहतर वेतन वाली नौकरी मिल गयी ......स्वभाव से बड़ी aggressive थी ...कहीं साल छः महीने से ज़्यादा न टिकी ......इधर उधर धक्के खाती रही .....बीच बीच में मिल जाती थी ...... एक बार दस साल बाद मिली .......एक बड़े स्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ाती थी ........तब मैंने पहली बार उसके दिमाग में ये कीड़ा डाला .......प्रिंसिपल बनने लायक हो ...... कहाँ पडी हो आजमगढ़ में ........ उसका क्या करूँ ? मार लात साले को ....... और उसने लात मार दी ....... पहली नौकरी प्रिंसिपल के तौर पे मिली फतेहपुर में और वेतन 7000 से सीधे 15 हज़ार ........6 महीने बाद मैंने कहा , कहाँ गंदे घटिया इलाके में UP में पडी है , भुक्खड़ों के बीच ....पंजाब आ जा ....... अखबार में vacancy देख के बतायी और टेलेफोन पे ही इंटरव्यू हुआ ........ फिर आई संगरूर .....बला की खूबसूरत थीऔर intelligent भी ......इंटरव्यू में तो फेल कभी हुई ही नहीं ...... वेतन 24000 ...फिर वहाँ से कुरुक्षेत्र होते हुए बटाला ....वेतन 55,000 .....और उसके बाद लुधियाना ....वेतन 1,25,000 . इस बीच घर वालों ने त्याग दिया था ......पति को तो लतिया के ही आई थी .......खबर मिली की बाप को मुह का कैंसर है और दिल्ली अस्पताल में भरती है ........ छोटा भाई दिल्ली में था किसी प्राइवेट जॉब में ....15000 की ........ बडकी लुधियाना से गयी .....छोटकी लन्दन से आयी ........बाप का ऑपरेशन हुआ ....फेल हो गया ...फिर एक के बाद एक 4 बार ऑपरेट करना पडा ....इस दौरान दोनों बहनें दिल्ली में ही रहीं ........ मझली अपने ससुराल आजमगढ़ में मस्त थी ....भाई की कोई औकात न थी ....इन्ही दोनों ने सम्हाला ..........
इसी माहौल में दोनों एक दिन दिल्ली में मुझे मिल गयीं ........ इमोशनल माहौल था ...... लगी दुखड़ा रोने ......... छोटकी याद करने लगी , कैसे दुत्कारते थे बचपन में लडकी होने के नाते ...... मनहूस ...... मझे हमेशा लगता था की हे भगवान् उस समय क्यों न था ultrasound .......जन्म ही न लेना पड़ता ....... हे भगवान् कितनी जिल्लत झेली है मैंने बचपन में ........ तीसरी बेटी होने के कारण .
तभी बडकी ने एक बम फोड़ दिया ........... जानती हो ......मैंने ये बात आज तक किसी को नहीं बतायी ........... आज बता रही हूँ .............. तुम्हारे और भैया के बीच दो लडकियां और हुई थी ........ और वो दोनों मिलिट्री हॉस्पिटल से ज़िंदा घर आयी थीं ............ और वो फूट फूट के जार जार रोने लगी ......... न जाने तुमको क्यों छोड़ दिया .........
तीनों बहनें बला की खूबसूरत हैं .......... वो दो भी अगर होती तो कैसी होती ?

Wednesday, October 8, 2014

9 अक्टूबर ......कौमनष्ट watch ........

कौमनष्ट watch .........
किसी जमाने में धरती पे एक कौम थी . धीरे धीरे वो नष्ट हो गयी ......... कुछ समाज विज्ञानियों ने समय रहते ये पहचान लिया था की ये कौम नष्ट हो जायेगी ....... इसलिए इन्होने इनके संरक्षण के प्रयास शुरू किये.......... सबसे पहले तो इनको endangered species में रखा ......... इनके पंजे गिने गए ....... इनको सरकारी खुराक पे पालना शुरू किया ......इनके लिए JNU जैसे अभयारण्य बनाए ..........अभयारण्य बोले तो sanctuary ......जहां ये निश्चिन्त हो के चर खा सकें ......... सरकार ने भी ये बेवस्था की की इनकी सुरक्षा हो ....सुरक्षा बोले तो इनको मार के कोई खाल न उतार ले .....यानि कोई इनको पटक के मारने न पाए ........
जो गिनती के कौम नष्ट बचे थे उन्हें महत्वपूर्ण पदों पे बैठाया ...मसलन इतिहासकार......... पत्रकार ........कलाकार ........ फिल्मकार .....कहने का मतलब ऐसे पदों पे बैठाया जहां ये कार नामे कर सकें .......... सरकारी संरक्षण के परिणाम जल्दी ही दिखने लगे और ये खा खा के मोटा गए ......और इनके पिछवाड़े यानी posterior cavity के इर्द गिर्द चर्बी की मोटी परत जम गयी .......... दुनिया भर में रिसर्च हुई की ये प्रजाति आखिर लुप्त क्यों हो रही है .....पाया गया की इनके DNA में ही दोष है ........
समाज में भी धीरे धीरे इनको ले के जागरूकता आई .......... लोग इनको watch करने लगे ....... नज़र रखने लगे .....क्या खाते हैं ....कहाँ रहते हैं ......इनको खुराक कहाँ से मिलती है ...... आदतें क्या हैं ....... किस खुराक से जल्दी मोटाते हैं .......
मैंने भी एक कौमनष्ट के गले में collar पहनाया है .......आजकल उसका सिग्नल उधर hongkong और नेपाल के जंगलों से मिल रहा है ........ उसके पीछे कैमरा लगा दिया है ....... सारा दिन हुआँ हुआँ करता है ...... उसकी हुआँ हुआँ पे एक साथ बहुत से शांति दूत कू कू भौ भौ करते हैं ........ इधर देखा गया है की उसकी हर आवाज़ पे शांति के पुजारी ज़्यादा बोलते हैं .......
मेरा कैमरा लगा है पीछे ....उसपे कड़ी नज़र है ....... सारी रिपोर्ट देता रहूँगा .....आप लोग भी नज़र रखिये ...........
क्रमशः ...............

Tuesday, October 7, 2014

27 september गुलज़ार साहब की आखिरी फिल्म ..........

gulzaar साहब ने 1999 में " हू तू तू " बनायी थी . वो उनकी अंतिम फिल्म थी .......उसके बाद उन्होंने फिर कभी फिल्म नहीं बनायी ........ ऐसे बहुत से फिल्मकार हुए हैं जिन्होंने एक से एक बेहतरीन फिल्में बनायी फिर वो अचानक सीन से गायब हो गए ........ मुज़फ्फर अली ..........उमराव जान के बाद कभी कोई फिल्म नहीं आई उनकी ...... हालांकि कोशिश उन्होंने बहुत की , पर बना न सके ...कई फिल्में story और script से आगे न बढ़ी तो कुछ आधी बन के बंद हो गयी ........ पर गुलज़ार साहब के साथ ऐसा कुछ न हुआ ......उन्होंने हू तू तू के बाद फिल्म मेकिंग से तौबा ही कर ली .........

कई बार लोगों ने उनसे पूछा की फिल्में बनाना क्यों बंद कर दिया .......उन्होंने हमेशा इस सवाल को टाल दिया .........कई बार यूँ बोले कि मैं मूलतः कवि हूँ .....लेखक हूँ .......मुझे लगा की थोड़े से दिन बचे हैं और इतना कुछ लिखना पढ़ना बाकी है इसलिए अब सिर्फ लिखने पढने में समय देता हूँ ........

दरअसल गुलज़ार साहब ने अपने दिल का दर्द कभी बताया नहीं किसी को ..........पर कुछ गिने चुने लोग तो जानते ही थे ......उनमे एक विशाल भारद्वाज हैं और एक तब्बू .......हाल ही में एक इंटरव्यू में विशाल भारद्वाज ने वो राज़ खोल दिया .......

दरअसल हू तू तू , जो हमने आपने देखी , वो वो हू तू तू नहीं थी जो गुलज़ार साहब ने बनायी थी .......जो फिल्म उन्होंने बनायी वो कुछ और थी ....... फिल्म के निर्माता धीरज लाल शाह को फिल्म का अंत पसंद न आया ........... उसने गुलज़ार साहब से कहा कि बदल दीजिये ....... गुलज़ार साहब ने कहा .....लाला .......गुलज़ार की फिल्म है ....... लाला के समोसे नहीं ......... शाह जी बोले , गुलज़ार साहब पैसे लगे हैं मेरे ........ मेरा माल है ....... क्यों मुझे कंगाल करने पे लगे हैं .......गुलज़ार साहब ने कहा की शाह जी , अगर फिल्म न चली तो आपका कुछ नुक्सान होगा .............. पर आप कंगाल न होंगे ........आपने फिल्म बदल दी तो गुलज़ार तो कहीं का न रहेगा ..........शाह जी को बात समझ न आई ...........गुलज़ार साहब मीटिंग छोड़ के चले गए ....... और फिर कभी लौट के न आये ......... शाह जी ने फिल्म का अंत अपने हिसाब से शूट करवा के अपने हिसाब से एडिट कर के रिलीज़ कर दी ...........

गुलज़ार साहब ने उसके बाद ज़िन्दगी में फिर कभी फिल्म नहीं बनायी ............

27 september ...अजी कोई हवा नहीं ....ये तो ब्लोअर की हवा है

अजी कोई हवा नहीं है .......अरे ये तो ब्लोअर की हवा है 

अरे कोई सुनामी नहीं ....ये तो सु सु नामी है .....

सिर्फ मार्केटिंग है ...... event management है .........

ये सपना सपना ही रह जाएगा .......कभी पूरा नहीं होगा ........

जानता है की असली लालकिले पे चढ़ने को नहीं मिलेगा कभी भी ....इसलिए नकली लालकिले से बोलता है ..........

अजी भाड़े की भीड़ है ........ मार्केटिंग बहुत अच्छी करता है बस .......

अरे छोटा मोटा रीजनल लीडर है ....जानता कौन है गुजरात के बाहर ......राहुल बाबा तो नेशनल लीडर हैं .......

राष्ट्रीय राजनीति का कोई अनुभव ही नहीं इसको ....... भारत बहुत जटिल देश है ....इसको सम्हाल ही नहीं पायेगा .......

अरे अंग्रेजी तो जानता ही नहीं .......

मुसलमान कभी नहीं बनने देंगे ...... मुसलामानों को नाराज़ कर के कोई चुनाव जीत ही नहीं सकता ........

160 से ऊपर आयेंगी नहीं ........राज नथवा ही नहीं बनने देगा ........ समर्थन कौन देगा ......10 सीट भी कम रह गयी तो नहीं जुटा पायेगा ........

गोधरा ....सोहराबुद्दीन ......इशरत ....... जुहापुरा ....... गोल टोपी ...... नरसंहार ......आदमखोर ........ पिरान्हा ....... अहसान जाफरी ....... ज़किया जाफरी .....सीतलवाड़ ........ बुर्का दत्त ......राजदीप ...... सागरिका .......

खुजलीवाल मोदी का रथ रोक लेगा ..........

नकली है ये central park भी ......fotoshop है ये भीड़ .......

नहीईईईईईईई........

नहीईईईईईईईईई .....................

कह दो की ये सब झूठ है ......... मेरा दिल कहता है की ऐसा हो नहीं सकता ...........

झूठ है ये ..........

26 september ......फेसबुक से निकलेंगे प्रेमचंद

बहुत लम्बी लम्बी यात्राएं भी उस एक पहले कदम से ही शुरू होती हैं . वो जो अभी खड़े तक होना नहीं जानते , बड़ी मुश्किल से घिसट के चलते हैं , किसी की ऊँगली पकड़ के बमुश्किल खड़े होते हैं ..........और जब पहला कदम उठाते हैं तो लडखडा के गिर जाते हैं ........ मैंने देखा है उनको कुछ दिन बाद दुनिया की लम्बाई नापते हुए ......... 

आज मैं एक बात लिख रहा हूँ ........ इसे नोट कर लेना ......संभव हो तो सहेज लेना कहीं ......इस धरती पे आज तक जो कुछ भी लिखा गया .....जितना साहित्य लिखा गया उस से ज़्यादा अगले बीस सालों में लिखा जाएगा .......

एक बार सैदपुर, गाजीपुर में हमारे स्कूल में हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार श्री जितेन्द्र नाथ जी पाठक आये ......वो हाल ही में एक college के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए थे . मैंने उनसे कहा की बच्चों को कुछ बताइए .......वो कैसे लिखना सीख सकते हैं .......उन्होंने एक simple सा सूत्र दिया .....छोटे छोटे एक दो लाइन के सन्देश लिखो .....अपनी दैनिक डायरी लिखो ....दो चार लाइन में खुद को व्यक्त करो .....कविता की दो ही लाइन लिखो ....न हो तो तुकबंदी ही भिड़ाओ ......... स्कूल में बच्चों को लाख प्रेरित करने के बाद भी हम उन्हें ये न सिखा पाए ............

आज फेसबुक और twitter वही कर रहा है ....... बड़े सहज तरीके से कर रहा है .......लोगों में स्वतः स्फूर्त प्रेरणा आ रही है ........अक्सर मुझे युवा inbox में मेसेज करते हैं ....sir , आपका लिखा पढने में बहुत मज़ा आता है ........ मैं उनसे कहता हूँ आप भी लिखा करें .....झिझक होती है ......कोई बात नहीं एक लाइन का कमेंट ही लिखिए ........ बहुत से ऐसे बच्चों को मैंने देखा जो एक लाइन के कमेंट से शुरू हुए और अब 2-4 महीने बाद अच्छी खासी पोस्ट लिख रहे हैं .........

हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था हमारे छात्रों को जो चीज़ 10-15 बरस में नहीं सिखा पाती , वो फेसबुक और twitter महीने दो महीने में सिखा दे रहे हैं .........अभिव्यक्ति ............ और मात्र 6 महीने में मैंने अपने कुछ मित्रों को देखा जो बिलकुल नहीं लिखते थे आजकल क्या गज़ब का लिख रहे हैं ......... एक से एक बेहतरीन पोस्ट ........एक से एक किस्सागो निकल रहे हैं .........

आने वाले सालों में सैकड़ों नहीं हज़ारों लाखों " मुंशी प्रेमचंद " पैदा होंगे फेसबुक से ..........

26 september .......secularism अनाथ हो गया है

बहुत बुरी खबर है ........ jungle में बहुत से अनाथ बच्चे जो भूख से बिलबिला रहे थे ....वो जिनकी माँ उनको जन्म देते ही मर गयी थी ......कुछ ऐसे थे जिन्हें उनकी माँ छोड़ के अपने प्रेमी के साथ भग गयी थी ....... और कुछ ऐसे भी थे जिनकी माँ मरणासन्न थी .........और बहुत से ऐसे थे जिनकी माँ को दूध ही न उतरा ......... वो सब बच्चे अलग अलग species के ........... उनको एक माँ मिल गयी थी ........वो जिसके 18 जोड़ी थन थे .......और वो की जिसके थानों से दूध टपकता था ......वो जो की jungle में लेट के सब अनाथ बच्चों को दूध पिलाया करती थी ........ कितनी भोली थी वो ..... उसने कभी ये न देखा की भेड़िये पी रहे हैं या लकड़ बग्घे या फिर गधे या सूअर ........ चाहे आम हो या ख़ास , सबको पिलाती थी .......... यूँ कहते हैं की उसका दूध सूख गया है .........

पिछले तीन दिन में सिर्फ 2686 , 1462 रु और 3983 रु चन्दा उतरा है ....... एक वो भी ज़माना था जब करोड़ों आया करते थे ......... यूँ बताते हैं की जगत अम्मा को अब दूध नहीं हो रहा .....क्या होगा उन अनाथ बेसहारा बच्चों का ........

आम आदमी पार्टी मरणासन्न है ........चंदा मिलना बंद हो गया बताते हैं ....... क्या होगा अब कौमनष्टों का .....और कांग्रेसियों का .......गांधीवादियों का और समाजवादियों का ........और सभी seculars का .....वो जो चिपट गए थे आप की छाती से .......ये सोच के की यही रोक लेगा रथ ......थाम लेगा लगाम अश्वमेध के घोड़े की ..........

कल मैंने देखा की कुछ अनाथ तो फिर से secularism की सूखी चूंची चिचोर रहे हैं .........अरे नालायकों .....कब का सूख चूका है दूध secularism की छातियों में ........अब तो खून रिसता है ............

26 september .......जंगल बड़ा बेरहम होता है


discovery चैनल से मैंने एक बात सीखी .......... अगर आप शेर के बच्चे हो तो ये ज़रूरी नहीं की आप भी शेर ही हो .......... कोई जन्मजात शेर नहीं होता ..........शेर बनना पड़ता है .........

discovery पे एक बड़ी मशहूर film है .....अक्सर आती है ........उसमे एक wildlife वैज्ञानिक को एक अनाथ टाइगर मिल गया था और उन्होंने उसे पाल लिया .........फिर जब वो वयस्क होने को आया तो उन्हें चिंता हुई की इसे तो jungle में छोड़ना पडेगा और ये तो जंगल के लिए फिट ही नहीं .......ये तो चूहा भी नहीं मार सकता ........ और वहाँ तो jungle है भैया .........और jungle बड़ा बेरहम होता है ...........

और फिर यूँ हुआ की उस वैज्ञानिक दंपत्ति ने उस टाइगर को दो साल तक जंगल में रहने का प्रशिक्षण दिया ........उसे शिकार करना भी सिखाया .......और जब उन्हें लगा की अब वो सब सीख गया है तो उन्होंने उसे collar पहना के छोड़ दिया .....और फिर 15 दिन बाद , जब वो उसे खोजते हुए आये , ये देखने की उनका लाडला कैसा है .....तो वहाँ झाड़ियों में सिर्फ वो collar मिला जिसमे transmitter लगा था ......लाडले को तो लकड़बग्घे मार कर खा गए थे अगले ही दिन ..........

बचपन मखमली कालीन पे अगर बीता हो तो जंगल रहम नहीं करेगा .......जंगल में तो वही जियेगा और जीतेगा जो पहले दिन से ही काँटों में पला और हर दिन जो जान हथेली पे ले के घूमा ........

यही फर्क है मोदी में और राहुल में .........

मैं अपने बच्चों को हमेशा यही बताता हूँ की वहाँ एक jungle है और jungle बड़ा बेरहम होता है .......... jungle में जीना सीखो ..........


26 september 

गाजीपुर में मेरे गाँव से कोई 10 किलोमीटर दूर एक गाँव है जहां का एक परिवार खानदानी पहलवान है . उसमे दादा बहुत तगड़े पहलवान हुए ......फिर उनके दो लड़के वो दोनों भी 100-100 किलो के रुस्तम हुए .......अब तीसरी पीढी में लड़के भरी जवानी में 60 किलो के हैं ........ यूँ ही बातचीत में मेरे बेटे ने एक दिन पूछ लिया की यहाँ UP में जितने पुराने बड़े पहलवान हुए उनके बेटे क्यों सब 60-70 किलो के रह गए ?

मैंने उसे बताया की तुम्हारे दादा जी , यानि मेरे पिता जी 5 फुट 3 इंच के थे ........ उनका विवाह हुआ सहारनपुर यानि मेरी ननिहाल गाजीपुर से कोई 900 km दूर सहारनपुर में है ........ मेरी height हुई 5 फुट 8.5 इंच ........... फिर मेरी शादी गाजीपुर से कोई 1200 km दूर जालंधर में हुई ........ तुम्हारी height 6 फुट 2 इंच है .......... यानि हर पीढी में औसत 5-6 इंच की वृद्धि ........ दादा जी 60 किलो के पहलवान थे , मैं 82 किलो का हुआ दिग्विजय 114 किलो का हुआ .......... औसतन हर पीढी में 20-30 किलो की वृद्धि ........

समझे बेटा ? ये genetic साइंस है ........ इसको हमारे पूर्वज आज से हज़ारों साल पहले भी समझते थे .........दुहिता दुर्हिता दूरेहिता भवतीति .......निरूक्‍त....... हमारे पूर्वज आज से हज़ारों साल पहले भी ये समझते थे की बेटी की शादी दूर .........बहुत दूर .......करनी चाहिए .......... महाभारत काल में दिल्ली वालों की ससुराल इरान , अफगानिस्तान , चीन और मंगोलिया तक होनी बतायी गयी है ..........

पर फिलहाल हमारे यहाँ गाजीपुर में सादी बियाह 2-4 किलोमीटर में हो रहा है .......बहुत हुआ तो 10-20 km दूर चले गए ........ 40-50 km को तो बहुत ज़्यादा दूर मान लिया जाता है ......... शायद यही कारण है की संतानें शारीरिक रूप से कमज़ोर होती जा रही हैं ....... रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम ......मेधा और बुद्धि पे भी इसका असर होता ही है .......

हमने बेटे को समझा दिया है .....कम से कम 1600 km .......इस से ज़्यादा 16, 000 km भी हो जाए तो परवाह नहीं .......... पहलवानी में super heavy वेट अब 125 kg तक हो गया है ........