Thursday, October 9, 2014

3 october...............किताबों की दूकान में भी भगदड़ मचती ..........

गाँधी मैदान में मेला देखने गए थे . क्या मिलता है सालों को इन मेलों में ? गए हैं कभी आप ? गंदे घटिया unhygienic से स्टाल होते हैं गोलगप्पों के , पकोड़े और गन्दी घटिया जलेबियों के , और पटरी पे बिकने वाला घटिया सामान 5-5 रु वाला ........ भीड़ भक्खड , धूल और गर्दो गुबार ........ क्या घटिया स्तर है यार, लोगों के एंटरटेनमेंट का .......क्या लेने जाते हैं इन मेलों में ....जान देने लोगों के पैरों तले कुचल के .....भगदड़ में ........
और ये साले शहरी लौंडे .....साले अगरबत्ती छाप cool dudes ....वो जिनकी jeans बस गिर ही जाना चाहती है सरक के , और ये छिछोरी लडकियां .....घूमने चल देते हैं मॉल में ? क्या है क्या इन malls में ? दूकान सजी है , महंगे सामान से , जिसे सिर्फ देख के, निहार के चले आते है ........ ललचाई निगाहों से ...... window shopping कहते हैं उसे शायद ........ कितना घटिया स्तर है एंटरटेनमेंट का .........
जहां भी देखता हूँ किताबों की कोई दुकान , ठिठक जाता हूँ ......और कितनी भी जल्दी में क्यों न हूँ ....... एक बार रुक के देख ही लेता हूँ , सड़क की फुटपाथ पे सजी दुकान पुरानी second hand किताबों की ......... और घंटों बिता देता हूँ किताबों की दुकानों में , उन्हें निहारता , छूता , देखता सहलाता और पलटता ......... कमबख्त आजकल पॉलिथीन की पन्नी में लपेट देते हैं ...........और वो मादक सी गंध किताबों की, जो आती है इन दुकानों में, किताबों की ...... मेरी बीवी बच्चों से कहती है ,सनकी है तुम्हारा बाप .....पता नहीं क्या मज़ा आता है इसे किताबों की दूकान में .......
काश ........... कभी किताबों की दूकान में भी भगदड़ मचती ..........

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