1970 में , मैं 5 साल का था . सिकंदराबाद के किसी cantt में रहते थे . वहाँ त्रिमलगिरी केंद्रीय विद्यालय में मेरा एडमिशन हुआ . 5 साल का था मैं ....... उस जमाने में गर्भस्थ शिशु का स्कूल में एडमीशन कराने की परम्परा न थी और प्री नर्सरी , नर्सरी , Lkg और Ukg इत्यादि कक्षाएं न हुआ करती थी . सीधे 1st में ही जाते थे बच्चे . हमारी क्लास की जो क्लास टीचर होती थी उसके दांत बाहर को थे ...वो जिन्हें rabbit tooth कहते हैं आजकल . उस जमाने में शायद ये orthodontics का चलन न था .........उसको मेरी माँ दतखोड़ी कहती थी . सो दतखोड़ी की शक्ल मुझे आज 45 साल बाद भी याद हैं .......उस शक्ल को कौन भूल सकता है भला ?
मैं छोटा सा बच्चा ....... क्लास में अपने क्लास टीचर के पास गया , उसी दतखोड़ी के पास , वो किसी और से बात कर रही थी और मेरी तरफ उसका ध्यान न था .......न वो मेरी बात सुन रही थी ....... सो मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ खीची , ठीक वैसे ही जैसे मैं अपनी माँ की पकड़ लेता था जब वो मेरी बात नहीं सुनती थी ......और उस दतखोड़ी ने मुझे बुरी तरह झिड़क दिया ....... मैं मासूम सहम गया ........ और मुझे ज़िन्दगी का पहला lesson मिला ....तुम्हारे माँ के अलावा दुनिया की कोई औरत तुम्हारी माँ नहीं हो सकती . और इस lesson को मैंने ज़िन्दगी भर याद रखा .......
फिर जब आगे चल कर हम लोग teaching में आ गए तो तो मैंने एक उसूल बनाया ........स्कूल में हमेशा बाप बन के रहा और मोनिका को हमेशा माँ बनना सिखाया ........
आजकल यहाँ सुल्तानपुर लोधी में , वो है तो प्रिंसिपल एक स्कूल की पर बच्चे सब उसे माँ ही समझते हैं ....... चढ़े रहते हैं सिर पे ....देखते ही भाग के आते हैं और लिपट जाते हैं टांगों से ........ ऑफिस में घुसे रहते हैं कैंडी लेने के लिए ........ एक बच्चे ने अपनी माँ से शिकायत की की प्रिंसिपल अब मुझे प्यार नहीं करती .......उसकी माँ स्कूल चली आई ......मैडम प्लीज ....... दो चार चुम्मियां ले लिया करो ......कहता है की अब प्यार नहीं करती प्रिंसिपल ....... अजी अब 5 th में हो गया है ....... अब इस से कहो की बड़ा हो जाए ........
जाने क्यों प्रिंसिपल जल्लाद की इमेज बना के रखती हैं स्कूल में ....माँ बन के भी अच्छा स्कूल चलाया जा सकता है .........
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