Thursday, October 9, 2014

6 oct .........छौंकी हुई दाल

बहुत साल पहले जब हमारे परिवार में अलगा गुजारी हुई तो हमारे पिता जी ने पुश्तैनी घर में हिस्सा न लिया और घर के बगल में पड़े खाली प्लाट में ही नया घर बनाया ........... सो उस प्लाट के पीछे एक कुम्हार परिवार रहा करता था ......उस जमाने में जब जमींदारी थी और ज़मीनें इफरात होती थी तो बाबू साहब लोग " परजा परजुनिया " को वहीं अगल बगल ही बसा दिया करते थे ....... सोच ये थी की वहीं अगल बगल रहेगा तो दिन रात सेवा में लगा रहेगा ....सो उस कुम्हार के दादा को हमारे दादा ने बसाया था कभी .......... प्रजा जब थी , तब थी . बाद में प्रजा अपना भूखा पेट ले कर दिल्ली बम्बई चली गयी और वहाँ खटने कमाने लगी . इधर बाबू साहब के लड़के ....... वो जिनके दरवाजे पे कभी हाथी झूमता था , वो उस हाथी का सिक्कड़ लिए घूमते थे ....... सो हमारे लौंडे सिक्कड़ घुमाते रह गए वो मेहनती लोग कमा के आगे बढ़ गए .......... सो वो कुम्हार भी कही दिल्ली मुंबई रहता कमाता था और उसके बीवी बच्चे यही गाँव में रहते थे .
तो उस दिन सुबह सुबह हमारी ताई जी और एक दो अन्य महिलाएं आयी हुई थी ......हमारे भैया ने घर के पिछवाड़े शानदार मखमली घास का लॉन बनवाया था और वहीं बैठ के " ठकुराईन " लोग चाय पी रही थी ........ बड़ा खुशनुमा माहौल था ......... गप्प चकल्लस हो रही थी ........ तभी छन्न से आवाज़ आयी ....... वो आवाज़ जी गरम तेल में प्याज डालने से आती है .........और हवा में भुने हुए जीरे की खुशबू तैरने लगी .......... " ठकुरहन " में अचानक सन्नाटा छा गया . फिर हमारी ताई जी बोलीं ....... " आज कल बड़ा छौंक के दाल बनत हौ " ................ठकुरायिनों का मूड off हो गया और चाय पार्टी आनन् फानन में बर्खास्त हो गयी ........ कुम्हारिन की दाल का छौंका ठाकुरायिनों से बर्दाश्त न हुआ .........
मैं वहीं बगल में बैठा था . बहुत देर तक सोचता रहा ........यही तो है सामंतवाद ........जो हमारी जड़ों में गहरे बैठा है आज भी ...... गरीब के घर से भुने हुए जीरे की महक बर्दाश्त न हुई ......... साल दो साल के भीतर ही हमने उस कुम्हार के परिवार को उजाड़ दिया वहाँ से जो हमारे घर के मखमल में पैबंद सा था ......... उसने वहाँ कोंहरान में अपने लोगों के बीच घर बना लिया ............
समय का चक्र पूरा हुआ ....... आज वहीं , ठीक उसी प्लाट पे जहां उस कुम्हार का टूटा हुआ घर था ....... " उदयन " शुरू होने जा रहा है ......... उसी वर्ग के बच्चों के लिए जिसे हमने एक दिन उजाड़ा था .........

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