Thursday, October 9, 2014

9 अक्टूबर .........खाली कैनवास

जालंधर के एक उद्योगपति हैं ........ उन्होंने एक स्कूल खोल दिया ....... उद्योगपति का एक mindset होता है ...... वो पूँजी लगाता है .....लेबर खटाता है और माल बनाता है ...... फिर उस माल को मार्किट में खपा देता है ......सो जनाब मूलतः उद्योगपति थे , सो उन्होंने पूंजी लगाई ........ teachers को लेबर की तरह खटाने लगे ......... आजकल ज़्यादातर प्राइवेट स्कूलों में teachers को लेबर की तरह खटाया जा रहा है ......... वैसे हिन्दुस्तानी लेबर तो फिर भी बड़े प्यार से मजे मजे से खटती है ....सुस्ता लिया ....बीड़ी पी ली ....फिर चाय पी ली ...उसके बाद सुरती रगड़ ली ........ England अमेरिका और china में लेबर खटाने के किस्से सुन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं ....... वहाँ लेबर ऐसे खटती है जैसे robot हो .......
प्राइवेट स्कूल की टीचर को आजकल एकदम Chinese लेबर की तरह खटाया जा रहा है ........ यूँ जैसे conveyor belt पे खडा हो .......सांस भी न लेने पाए ...... मेरे एक मित्र की पत्नी Cambridge international School दसूहा में पढ़ाती थी ....... स्कूल की प्रिंसिपल और मैनेजमेंट का रवैया बिलकुल उद्योगपतियों वाला था ....... टीचर को बिलकुल मशीन बना दिया गया था ........सारे टीचर्स जालंधर से दसूहा स्कूल बस से जाती थीं ......एक घंटे का सफ़र होता .....ज़्यादातर रास्ते भर कॉपी check करती जाती थी .....6 महीने में उनकी ये हालत हो गयी की मुझे लगा , पगला जायेंगी ......वो इतनी ज़्यादा frustrate हो गयी की अकेले में रोती थी .....क्लास में बच्चों पे खीज उतारती ........ एक दिन मुझे कहने लगीं , मेरा मन करता है कि मैं क्लास में बच्चों को गिरा के उनके बाल नोच नोच के उन्हें पटक के मारूं ......... मेरी पत्नी सामने बैठी बड़े गौर से सुन रही थी ........ मैंने उन्हें तुरंत नौकरी छोड़ देने की सलाह दी .....उन्होंने 15 दिन बाद इस्तीफा दे दिया ...........
स्कूल कोई factory नहीं है .... और बच्चे conveyor belt पे चलता कोई product नहीं ....... और टीचर कोई लेबर नहीं होता ........teaching is an art .........और हर टीचर एक artist होता है ........ और बच्चा एक खाली कैनवास ........ स्कूल को फैक्ट्री मत बनाओ ........ टीचर को कलाकार ही रहने दो ...... 70 -80 के दशक में सैदपुर के Town National Intermediate College में हिंदी के प्राध्यापक थे बाबू हरषु प्रसाद सिंह ....जीवन में कभी absent नहीं हुए स्कूल से ........न कभी कोई क्लास मिस की .......बारहवीं क्लास को हिंदी पढ़ाते थी ......साल भर में पहले lesson का डेढ़ पन्ना पढाये ........ उनके प्रिंसिपल ने भी कभी नहीं पूछा की syllabus कितना हुआ ? यूँ बताया जाता है की हरषु प्रसाद की उस क्लास का हर लड़का हिंदी का मूर्धन्य विद्वान् हुआ और अभी हाल ही में उनके students का एक get together हुआ अपने गुरु जी को श्रद्धांजलि देने के लिए .......उनमे से ज़्यादातर हिंदी के लेखक , कवि , professors और डिग्री college के principals थे .......... हरषु प्रसाद सिंह किसी फैक्ट्री के लेबर न हुए ......... कलाकार थे .....उन्होंने जो बनायी वो कलाकृतियाँ थीं ......
मोनिका जो स्कूल चलाती हैं , कोशिश करती हैं की फैक्ट्री न बने ......... और टीचर्स लेबर न बनें ...... हालांकि व्यापारिक मजबूरियाँ होती हैं फिर भी सामंजस्य बैठाती हैं ......... टीचर्स को कलाकार बनाने की कोशिश करती हैं .........
10 साल के अंतराल के बाद अब फिर से teaching में घुसने जा रहा हूँ ....... " उदयन " के माध्यम से ........... कोई व्यापारिक दबाव भी न होगा ........ देखें क्या कलाकृतियाँ बनती हैं इस बार ..........बच्चों का क्या है ...वो तो खाली कैनवास होते हैं .........

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