Thursday, September 25, 2014


पुराने ज़माने में महिलाओं की किसी पत्रिका में एक स्तम्भ छपा करता था " हाय मैं शर्म से लाल हुई " . पिछले दो दिन से अपना भी कुछ यही हाल है .......... शर्म से टमाटर हुए जा रहे हैं ......... सारी दुनिया लानतें भेज रही है ......कहा जा रहा है की महिलाओं का सम्मान नहीं करना जानते हम ........... उन्हें इज्ज़त नहीं देना जानते ........... उन्हें बराबरी का हक नहीं देना चाहते ........
औरत को भी हक है अपनी मर्ज़ी से ओढने पहनने का ......... दिखाने छुपाने का ......... आज की नारी जाग चुकी है .......उसे खुद decide करने दो की वो क्या पहनेगी ......... पहनेगी की नहीं पहनेगी ........ तुम मर्द हो , पर तुम्हारा कोई हक नहीं ......... तुम्हारे सामने विकल्प नहीं है ........तुम ये decide नहीं कर सकते की सड़क पे नंगी / अधनंगी घुमती लड़की को इज्ज़त बक्शनी है या उसे लानत भेजनी है .......ये हक तुमसे छीन लिया गया है .....तुम्हे हर हाल में उसे इज्ज़त देनी है ....... वाह ....वाह ......सुभान अलाह ........मुक़र्रर ......इरशाद .......एक बार और .........बहुत खूब ........ यही निकलना चाहिए आपके मुह से ........ ऐ मोमिनों ........सड़क पे नंगी घूमती लड़की को इज्ज़त दो ..........
फ़ौज में जब झंडा लहराया जाता है तो तीन फौजी बिगुल बजाते हैं .......जो जहां हो वहीं सावधान खडा हो जाता है .......... फिर धीरे धीरे झंडा चढ़ाया जाता है .......इसे कहते हैं सम्मान करना ........इज्ज़त देना .......कहीं कहीं सम्मान देने के लिए , इज्ज़त बक्शने के लिए 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है ......... मुगलिया दरबार में झक के तीन बार सलाम करने का चलन था ........
इसलिए ऐ मर्दों , शर्म करो ........ जहां अर्ध नग्न लड़की / महिला सड़क पे दिख जाए .......... उसे इज्ज़त दो ........ 21 तोपें तो ला नहीं सकते ........ पर तुरंत वहीं सावधान खड़े हो जाओ .......झोले से बिगुल निकाल के बजाओ ......... झुक के तीन बार सलाम बजाओ ........ तुम्हे कोई हक नहीं उसकी dress पे टिप्पणी करने का ....... वो क्या दिखाती है और क्या छुपाती है ये उसकी आजादी है .........
औरतों की आजादी का पैमाना उसका नंगापन ही है क्या ?
हर वो औरत जो शालीनता से कपडे पहनती है गुलाम है ????????

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