केंचुए ....ज़मीन पे पेट के बल घिसटते केंचुए .........
दुनिया के 99.99% लोग लकीर के फ़कीर होते हैं । सारी जिंदगी लकीर पीटते हैं । दूसरों की बनायी पगडण्डी पे चलते हैं । जो भी काम करते है ,वो इसलिए करते हैं की दूसरे भी ऐसा ही करते हैं । उन्हें खुश रखने के लिए करते हैं । उन्हें सारी जिंदगी एक ही चिंता खाए जाती है ..... हाय ,लोग क्या कहेंगे ? इसके उलट दुनिया का स्वरुप जो आज दिखाई दे रहा है वो इन केंचुओं ..... पेट के बल रेंग के चलने वाले लकीर के फकीरों की बदौलत नहीं है । ये जो दुनिया आज दीखती है ,ये उन बागियों ने बनायी है जिन्होंने बनी बनायी पगडंडियों पे चलने से मना कर दिया । उन विद्रोहियों की है ये दुनिया जिन्होंने कुछ नया सोचने की और नया करने की हिम्मत की । विद्रोह किया स्थापित मान्यताओं से । एक आदमी बोला laptop बनाऊंगा । खलीफा बोले अबे पागल हो क्या ? computer भी कोई गोद में रखने की चीज़ है ? एक और था । वो बोला की mobile फोन ......खलीफा बोले .... why should a man carry a fon in his pocket ? दुनिया में हर नयी सोच का और हर नयी चीज़ का पुरजोर विरोध हुआ .....परंपरा वादियों ने गर्दनें उतार ली । कोई बाप नहीं चाहता की उसका बेटा बागी हो ...... सबको श्रवण कुमार ही चाहिए । शेर पालना बड़ा मुश्किल होता है ........ केंचुए बड़ी आसानी से पल जाते हैं ...... मिटटी में घुस के ,मिटटी ही खा के मिटटी हगते हुए ..... क्रमशः..........
जमीन पे पेट के बल घिसटते रेंगते केंचुए ....... 3
सुबह जाने क्यों मुझे लगा कि मैं बहुत तल्ख़ हो जाता हूँ लिखते समय । जहर उगलता हूँ । आज दिन में सोचा अब नहीं लिखूंगा बहुत कडवी बात । पर क्या करू ? कोई न कोई विषय ऐसा आ ही जाता है ...... अब आप ही बताइए , इतनी घृणित कुरीतियों और परम्पराओं को ढो रहा है समाज । और हमारे ये नौजवान ,क्यों ढोते हैं इन्हें । अरे केंचुओं .......उठ खड़े हो एकदिन ..... अबे ये जवानी किस दिन काम आएगी । अरे हिम्मत तो करो ...... बहुत आसान है इस भंवर से बाहर निकलना । अरे कर के तो देखो । |
Saturday, September 27, 2014
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