Saturday, August 9, 2014

8 august 2014
कल्पना कीजिये की आपके घर में सुबह पानी आता है ..........सिर्फ दो घंटे के लिए ......... उसमे भी हफ्ते में एक दो बार ऐसा हो जाता है की सिर्फ आधे घंटे के लिए ही आता है ......... और आपके घर में बाल्टी तक नहीं है ......... छत पे water tank तो छोडिये , घर में बाल्टी तक नहीं है ......... ऐसा होगा तो क्या जीवन होगा आपका ? सुबह सुबह , जब तक पानी आ रहा है , नाहा धो लो , जो कपडे धोने हैं धो लो .........फिर सारे दिन की छुट्टी ....... ऐसा भी होगा की आपने सब काम निपटा लिया और पानी अभी आ ही रहा है .......... फिर आप या तो टूटी बंद कर देंगे या पानी बहता रहेगा . ऐसी परिस्थिति में अगर कभी दिन में पानी की ज़रुरत पड़ गयी तो जोहिये अगले दिन को ......... कल सुबह पानी आयेगा तो काम करना .

भारत देश में हरी सब्जी की यही दशा है ........... आज से 10-15 साल पहले , ज़्यादातर हिन्दुस्तान चटनी भात खा के ज़िंदा रहता था . दाल सब्जी तो अमीर लोग खाया करते थे ........ मेरी ये बात सुन के नयी उम्र के शहरी बच्चे अचंभित हो सकते हैं ........उन्हें शायद मेरी बात पे भरोसा न हो ......पर ये सत्य है ........ सिर्फ चंद साल पहले तक देश नून भात खा के जी रहा था ........वो तो भला हो नरसिम्हा राव और इन्ही मनमोहन सिंह का की इन्होने देश की आर्थिक नीतियाँ बदली ........देश की इकॉनमी बढ़ी ......लोगों की buying capacity बढ़ी ......... जब सम्पन्नता आती है तो आदमी सबसे पहले किराने की दूकान की तरफ भागता है ......... अचानक दालें महंगी हो गयी ...सरसों का तेल महँगा हुआ .....सब्जियां महंगी हुई ........ 125 करोड़ लोग पेट भर खाना जो खाने लगे थे .......... फिर सब कुछ अचानक इतना महँगा हो गया की अधिकाँश जनसंख्या फिर चटनी भात पे वापस आ गयी है ........

जिस अनुपात में खाद्य पदार्थों , ख़ास कर हरी सब्जियों की मांग बढ़ी है उस हिसाब से आपूर्ति नहीं बढ़ी ........ हरी सब्जी के साथ समस्या ये है की ये साल में 3-3 महीन के तीन चक्रों में उपलब्ध होती है ........ वर्षा और ज़्यादा सर्दी के दिनों में इसकी आपूर्ति एकदम घट जाती है .....अप्रैल मई जून में इतनी ज़्यादा सब्जी होती है की किसान को लागत तो दूर तुडवाई और भाडा तक नहीं मिलता ........किसान कई बार सब्जी की खड़ी फसल पे ट्रेक्टर चलवा देते हैं .........अभी सिर्फ दो महीने पहले यहाँ पंजाब में थोक मंडी में टमाटर 2.5 रु , शिमला मिर्च 3 रु , खीरा 2.5 रु बिक रहा था और घीया लौकी तो किसान मंडी में लाये ही नहीं .....संगरूर के किसानों ने अपनी घीया पशुओं को खिलाई ............ और फिर सिर्फ 20 दिन बाद वही टमाटर फुटकर में 20 रु हो गया .........और पिछले दिनों वही लौकी घीया 30 - 40 तक बिकी .........

जिस घर में बाल्टी और छत पे टंकी नहीं होगी वहाँ लोग दिन भर पानी के मोहताज रहेंगे . 125 करोड़ लोगों के देश में यदि हरी सब्जी को ऑफ सीजन के लिए preserve करने की व्यवस्था नहीं की जायेगी , लोग इसी तरह सब्जी के लिए तरसेंगे ...... हरी सब्जियों को cold स्टोर में नहीं रखा जा सकता .........सिर्फ आलू को रख सकते हैं .....प्याज के लिए अलग किस्म की हवा दार storage चाहिए ........ टमाटर और हरी सब्जियों को अलग अलग तरीके से puree , powder और अन्य हरी सब्जियों को काट कर freeze करके रखा जाता है जिस से सीजन ख़तम होने पर उन्हें मार्किट में उतारा जा सके .......... यदि हरी सब्जियों की preservation industry देश में आ जाती है तो इसके दो फायदे होते हैं .......पहला तो ये की संगरूर की लौकी की स्थिति नहीं होती .........पीक सीजन में भी चूँकि बड़े बड़े खरीददार बैठे हैं इसलिए जो सब्जी आज तीन रु बिकती है उसकी कीमत थोक में 8-10 रु हो जाती है ........इस से किसान को ज़बरदस्त फायदा होता है ............उपभोक्ता को ये नुक्सान होता है की वो चंद दिन जब वो 5 रु किलो सब्जी खाता था वो मौज नहीं मिलती ......तब उसे वही सब्जी 15 रु लेनी पड़ेगी .....परन्तु उसके बाद , जब सीजन नहीं रहेगा , जैसा की आजकल है , जब सब सब्जियां 30 -40-50 ..........और 100 रु तक बिक रही है ये स्थिति नहीं आती ....तब मार्किट में frozen vegetables आ जाते हैं और भाव वही 15-20 पे टिके रहते हैं

हिन्दुस्तान ने अभी frozen food खाना नहीं सीखा है ......हम आज भी ताज़ी सब्जी ही खोजते हैं .......परन्तु इतने बड़े देश को , जहां 125 करोड़ लोग रहते हैं , साल भर सस्ती ताज़ी सब्जी नहीं खिलाई जा सकती ......... हिन्दुस्तान को बहुत बड़े पैमाने पे food processing industry लगानी पड़ेगी और हिन्दुस्तानियों को frozen और processed food खाना सीखना ही पड़ेगा .......... इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है .........



No comments:

Post a Comment