Saturday, August 9, 2014

अजित सिंह ......भोजन भट्ट ........ अथ बाटी कथा ........ bhaag 2..........

बहुत दिनों से फेसबुक पे माहौल बड़ा तल्ख़ चल रहा था ...बड़ी गर्मा गर्म बहस चल रही थी ......तलवारें खिची हुई थी .........सोचा आज कुछ हल्का कर देते हैं .......

सो चर्चा चल रही है बाटी की .......... बाटी की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण ये है की इसके खाने वाले जब भी पार्टी या पिकनिक का मूड बनाते हैं तो बाटी ही बनती है ........ हमारे यहाँ गाजीपुर में पिकनिक मनानी हो तो यही कहा जाता है ....चलो आज बाटी चोखा लगाया जाए .......... हम लोगों का जब मूड होता है तो हम घर के लड़कों को बुला कर कह देते हैं ....ऐ लड़कों .......आज शाम को बाटी चोखा लगाओ ........ सबके चेहरे खिल जाते हैं ........ क्योंकि बाटी हमेशा घर से बाहर बगीचे में , सीवान में , खलिहान में ही लगती है ....... एकदम पिकनिकिया मूड मिजाज़ से ..........

पूर्वांचल में भट्ठे पे भी बाटी लगाने का चलन है ...... भट्ठे की आंच पे बाटी और चोखा बहुत बढ़िया सिकता है ......वहाँ इसे बनाना बहुत आसान इसलिए होता है की आंच तो हमेशा , 24 घंटे रेडीमेड होती है ........बस आलू भंटा रख देना है .......हो गया चोखा ........ पूर्वांचल में पारंपरिक रूप से बाटी चोखा रसोई घर में बनाने की dish नहीं है ......ये खेत , खलिहान , सीवान , यात्रा , पार्टी , पिकनिक की dish है ......... यदि रसोई में बनती भी है तो सामान्य मूड से नहीं बनती ......... हमेशा फरमाईश पे बनती है .......और हमेशा फेस्टिव मूड में ही बनती है ........ शहरी जीवन में , भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ....... आपा धापी में बाटी पीछे छूट जाती है ......... फिर अचानक किसी दिन याद आती है .....ऐसी ही कोई पोस्ट पढ़ के , आदमी nostalgic हो जाता है .........इमोशनल हो जाता है ........तो फिर वही festive मूड से बाटी बनायी जाती है ........

बाटी का एक तीसरा पहलू ये है की ये आदि काल में योद्धाओं का भोजन रहा और आगे चल के मेहनत कश लोगों का भोजन बन गया ........ आज भी आपको सड़कों के किनारे , मेहनत मजदूरी करने वाले लोग , यात्री .........बाटी लगाते दिख जायेंगे ....... बाटी के साथ फक्कड़ मस्ती जुडी हुई है ........ ये मुझे adventure से जुड़ा हुआ भोजन प्रतीत होता है ......... आपको शायद अंदाजा न हो पर बाटी चोखा बिना किसी बर्तन के .......बन सकता है .......सिर्फ चंद उपले , जो हर जंगल सीवान में बहुतायत से उपलब्ध हो जाते हैं ....... और आटा , आलू , भंटा , प्याज , मर्चा ......... चलो जी हो गया
..........कुछ शहरी मित्र सोच रहे होंगे की बिना बर्तन आटा कैसे गुन्देगा ...........गमछे पे ........भारतीय लोक जीवन में गमछा .....यानि पतले कपडे का वो टुकडा ........ हमारे जीवन का अनिवार्य अंग रहा है .....कोई ग्रामीण पहले आपको लाठी और गमछे के बिना नहीं दिखता था ........ गमछा ओढ़ लो , बिछा लो , तौलिया बना लो , लपेट के नहा लो ....तेज़ धुप हो तो सिर पे ले लो या मुह ढक लो .......बोझा उठाना हो तो पगड़ी बना लो .......... और ज़रूरत पड़ने पे अच्छी तरह धो कर उसी पर आटा या सत्तू सान लो .......... यात्रा में जो चना चबेना सत्तू लिए हो उसे बाँध लो और बाज़ार से पूरी खरीदारी कर के उसी गमछे में बाँध लो ......वाह कितने काम की चीज़ है गमछा ..............
सो भाई लोग बिना किसी बर्तन के , सीवान में उसी गमछे पे आटा गूंद के, बाटी सेक के , पत्ते तोड़ के उसकी पत्तल दोना बना के , उसी पे खाना खा लिया करते थे ............

इसीलिए मैं कहता हूँ की बाटी का भोजन फक्कड़ मस्ती का भोजन है ...........

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