Saturday, August 9, 2014

यूँ मैं गाय , गोरक्षा और गो हत्या के विषय पे शुरू से ही लिखता आया हूँ . हिन्दू जनमानस के लिए ये विषय बहुत ही संवेदनशील है . आम तौर पे लोग स्थापित मान्यताओं से इतर सोचने , बोलने या लिखने की हिम्मत नहीं करते . जब कोई बोलता है तो स्वाभाविक रूप से उग्र प्रतिक्रया आती है ........लोग विरोध करते हैं ........ व्यक्ति समाज में अलोकप्रिय हो जाता है ........ अपशब्द और गालियाँ सुननी पड़ती हैं .....उपहास उड़ाया जाता है .........क्योंकि लोग यही चाहते हैं की सामने वाला बस उनके मन की ही बात कहे ....... जो वो सही समझते हैं वही लिखे ......... उनका मानसिक तुष्टीकरण करे ....... समाज में कोई भी अलोकप्रिय नहीं होना चाहता ......... लोकलुभावन बातें .....लोकलुभावन नीतिया .....लोकलुभावन राजनीत ......... लोकलुभावन लोकनीति .......

इसी देश में आज से सिर्फ सौ साल पहले लड़कियों को पढ़ाने की परम्परा नहीं थी .......... महर्षि दयानंद की प्रेरणा से जालंधर में लाला देव राज जी ने बालिकाओं की शिक्षा हेतु देश का प्रथम विद्यालय स्थापित किया .........उनका समाज में इतना उग्र विरोध हुआ की उनका हुक्का पानी बंद कर दिया गया और उनका बहिष्कार किया गया .......क्योंकि वो समाज की स्थापित मान्यता ......लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहिए ......इसके विपरीत कार्य कर रहे थे ....बाल विधवा का आजीवन वैधव्य ....... सती ........ अस्पृश्यता ..... मूर्ती पूजा ....... ये सब क्या हैं ? समाज में स्थापित सामाजिक धार्मिक मान्यताएं जो अंततः समय के साथ टूटी .......

गो हत्या और गो रक्षा पे समाज की स्थापित मान्यताओं से इतर , मेरे विचार पढ़ के मेरे पाठकों को निराशा हुई है .........दरअसल हर व्यक्ति वहीं देखना सुनना पढना चाहता है जो उसके विचार के अनुकूल हो .........फेसबुक पे मेरे लेखन का उद्देश्य कभी भी वाहवाही बटोरना और ढेरों likes इकट्ठे करना नहीं रहा ..........

गुलज़ार साहब की फिल्म " इजाज़त " में एक जगह उन्होंने कहा है ........" जो सच है और सही है वही कीजिये "

चाहे उसके लिए समाज की स्थापित मान्यताओं के विपरीत ही क्यों न जाना पड़े ........... यूँ भी बनारस में कहते हैं ....गालियाँ तो शिव जी का प्रसाद हैं ....प्रेम पूर्वक ग्रहण कर लेना चाहिए ........

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