Saturday, August 9, 2014

अजित सिंह ......भोजन भट्ट

बाटी चोखा मेरा प्रिय भोजन है .......... जो लोग भोजन के शौक़ीन होते हैं उन्हें बनाने और खिलाने का भी शौक होना चाहिए वरना ये शौक अधूरा है ..........मेरे एक पंजाबी मित्र है .........भोजन भट्ट हैं ........उन्हें बड़े चाव से बना कर खिलाई एक दिन baati चोखा .......उन्हें कतई पसंद नहीं आया ........फिर मैंने उन्हें बड़े प्यार से समझाया ........ हर चीज़ सीखनी पड़ती है .......जी हाँ खाना खाना..... नित्य नए भोजन खाना और उन्हें relish करना भी सीखना पड़ता है ........learn ..... how to eat and relish good food .......... एक वैज्ञानिक तथ्य है .....human body बहुत तेज़ी से सीखती है .......मेरा बेटा खाने में मिर्च बिलकुल नहीं खा पाता था .......ज़रा सी छू भी गयी तो बुरा हाल ......... मैंने उसे समझाया ....... रोज़ travel करते हो .....देस भर में ...... बाहर खाना खाते हो .....हिन्दुस्तान भर मिर्च खाता है .........यूँ ही जिंदगी भर परेशान रहोगे .....सीख लो मिर्च खाना ......और यकीन मानिए , मैंने उसे मात्र 21 दिन में मिर्च खाना सिखा दिया ........जी हाँ .......human body learns and unlearns very fast ........amazingly fast ..........to be precise .......in 21 days ......... जी हाँ ....आप 21 दिन में कुछ भी नया सीख सकते हैं .....अगर कोशिश करें तो ....और ये एक scientific fact है ........... सो मैंने अपने मित्र को समझाया की या तो हमेशा अपनी अम्मा के हाथ की बनी सब्जी खाओ .......ता उम्र .........या फिर दुनिया भर के भोजन का मज़ा लेना है अगर तो सीखना पडेगा ......... समझदार आदमी हैं ....... सीख गए .........कोई भी नया भोजन , नए किस्म का भोजन .......कोई नया cuisine relish करने के लिए आपको उसका taste develop करना पड़ता है .........भोजन यदि वाकई अच्छा है तो कितना भी नया cuisine क्यों न हो ........यदि पहली बार पसंद न भी आये तो दूसरी तीसरी बार आ जाता है .....ये मेरा निजी अनुभव है .........

सो बात चल रही थी बाटी चोखा की .......... बड़ा लाजवाब भोजन है , परन्तु जिसने पहले कभी नहीं खाया है उसके लिए इसे पहली बार खाना एक सज़ा हो जाता है .........परन्तु यदि आपने इसे खाना सीख लिया तो आप इसके दीवाने हो जाते हैं .......... मूलतः यह राजस्थान का भोजन है ..... इसकी history भी मजेदार है ........बताया जाता है की राजस्थान के राजपूत योद्धा बाजरे के आटे में नमक डाल के गूंद लेते थे और रेगिस्तान में रेत में दबा दिया करते थे .......... उन्हें पता होता था की भोजन रेगिस्तान में कहाँ कहाँ दबा हुआ है ........ कई बार तो वो कई कई साल पुरानी बाटियाँ इसी तरह जमीन में गाड़ी हुई .......ज़रूरत पड़ने पे निकाल कर खाते थे .......ये सिर्फ गर्म रेत में ही पक जाती हैं ........ तब इन्हें झाड के देसी घी में डुबा दिया जाता था और ये खाने लायक हो जाती थी ......... युद्ध काल का भोजन धीरे धीरे राजस्थानी समाज में दैनिक खान पान में शामिल हो गया .....इसमें आम तौर पे दो तीन या ज़्यादा किस्म के आटे मिला कर बनाया जाता है जिसमे मुख्यतः गेहूं , बाजरा , ज्वार , जौ , चना प्रमुख हैं ......... इसे उपलों की आग बना के उसपे सेक के फिर उस गर्म राख में दबा दिया जाता है और ये आधे घंटे में सिक के तैयार हो जाती हैं .........नए ज़माने में हम लोग इसे आजकल oven में बनाते हैं ........ राजस्थान में इसे आम तौर पे दाल या गट्टे की सब्जी के साथ खाया जाता है और इसके साथ कत्त और चूरमा ये दो sweet dishes भी बनायीं जाती हैं ....उनका ज़िक्र मैं अगली पोस्ट में करूंगा ..........

मज़े की बात ये है की बाटी का एक भोजन के रूप में देश के अन्य हिस्सों में विस्तार ....इसे समझना एक बड़ा मजेदार विषय है ........ कुछ dishes कुछ ख़ास areas की signature dishes होती हैं .......जैसे की दाल बाटी राजस्थान की है ........ पर पड़ोस में हरियाणा , पश्चिमी उत्तर प्रदेश , पंजाब , हिमाचल , या मध्य प्रदेश में नहीं खाई जाती है ......... पर राजस्थान से 1000 km दूर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में जा कर पुनः प्रकट हो जाती है ........जी हाँ बाटी पुरबियों को भी बहुत ज़्यादा पसंद है ......... अलबत्ता यहाँ इसके साथ चोखा खाने की परम्परा है ....... चोखा माने उपले की धीमी आंच पे आलू , बैगन , टमाटर इत्यादि भून कर उन्हें mash कर उसमे ढेर सारा प्याज , लहसुन , अदरक , हरी मिर्च मिक्स कर लिया जाता है .......ध्यान दीजिये इसे छौंक नहीं लगाया जाता ........सब कुछ कच्चा ही ........ और फिर उसमे डालते हैं कच्चा सरसों का तेल ........... चोखा ......इसका शाब्दिक अर्थ है तीखा .....करारा ........ सरसों का तेल डालने से इसमें तीखापन या करारा पन आता है .......... पर यही झोल हो जाता है .......नया आदमी कच्चा सरसों का तेल बर्दाश्त नहीं कर पाता .......एकदम नया सा फ्लेवर जो आता है ......पर जान लीजिये , चोखे का असली खवैय्या बिना तेल का चोखा खा नहीं सकता ....... और चोखा खा के अगर नानी याद न आये तो काहे का चोखा .......यूँ बाटी के साथ दाल भी बनायी जाती है ......पर पूर्वांचल में असली खवैया बाटी चोखे के साथ ही खायेगा ....दाल को हाथ नहीं लगाएगा .......चोखा अपने आप में एक complete dish है ......

मैंने ये जाने की कोशिश की कि बाटी के चलन में ये gap क्यों है ...... यानि राजस्थान के बाद सीधे पूर्वांचल में क्यों प्रकट होती है .......... पश्चिमोत्तर से गायब क्यों है ....... इसका कारण मुझे ये समझ में आया की मध्य काल में जब मुस्लिम आक्रमण शुरू हुए तो राजस्थान के बहुत से लोग migrate हुए .....इतिहास में दर्ज है की पहला जत्था राजस्थान से चल कर प्रतापगढ़ आया था और फिर वहीं बस गया ........ वही राजस्थानी राजपूत अपने साथ बाटी ले कर आये ......... इसके बाद ये migration सदियों तक चलता रहा और बाटी भी प्रतापगढ़ से आगे बढती हुई पूरे पूर्वांचल समेत बिहार तक चली गयी ......... और स्थानीय लोगों का प्रिय भोजन बन गयी .........परन्तु बंगाल की सीमा पे जा के पुनः रुक गयी ........

क्रमशः ............ अगले अंक में .....बाटी की लोकप्रियता का प्रमुख कारण क्या है ???????? आज भी राजस्थान और पूरब के लोगों का चेहरा क्यों खिल उठता है बाटी का नाम आते ही ???????

Photo: अजित सिंह ......भोजन भट्ट 

बाटी  चोखा मेरा प्रिय भोजन है .......... जो लोग भोजन के शौक़ीन होते हैं उन्हें बनाने और खिलाने का भी शौक होना चाहिए वरना ये शौक अधूरा है ..........मेरे एक पंजाबी मित्र है .........भोजन भट्ट हैं ........उन्हें बड़े चाव से बना कर खिलाई एक दिन baati चोखा .......उन्हें कतई पसंद नहीं आया ........फिर मैंने उन्हें बड़े प्यार से समझाया ........ हर चीज़ सीखनी पड़ती है .......जी हाँ खाना खाना..... नित्य नए भोजन खाना और उन्हें relish करना भी सीखना पड़ता है ........learn ..... how to eat and relish good food ..........  एक वैज्ञानिक तथ्य है .....human body बहुत तेज़ी से सीखती है .......मेरा  बेटा खाने में मिर्च बिलकुल नहीं खा पाता था .......ज़रा सी छू भी गयी तो बुरा हाल ......... मैंने उसे समझाया ....... रोज़ travel करते हो .....देस भर में ...... बाहर खाना खाते हो .....हिन्दुस्तान भर मिर्च खाता है .........यूँ ही जिंदगी भर परेशान रहोगे .....सीख लो मिर्च खाना ......और यकीन मानिए , मैंने उसे मात्र 21 दिन में मिर्च खाना सिखा दिया ........जी हाँ .......human body learns and unlearns very fast ........amazingly fast ..........to be precise .......in 21 days ......... जी हाँ ....आप 21 दिन में कुछ भी नया सीख सकते हैं .....अगर कोशिश करें तो ....और ये एक scientific fact है ........... सो मैंने अपने मित्र को समझाया की या तो हमेशा अपनी अम्मा के हाथ की बनी सब्जी खाओ .......ता उम्र .........या फिर दुनिया भर के भोजन का मज़ा लेना है अगर तो सीखना पडेगा ......... समझदार आदमी हैं ....... सीख गए .........कोई भी नया भोजन , नए किस्म का भोजन .......कोई नया cuisine relish करने के लिए आपको उसका taste develop करना पड़ता है .........भोजन यदि वाकई अच्छा है तो कितना भी नया cuisine क्यों न हो ........यदि पहली बार पसंद न भी आये तो दूसरी तीसरी बार आ जाता है .....ये मेरा निजी अनुभव है .........

सो बात चल रही थी बाटी चोखा की .......... बड़ा लाजवाब भोजन है , परन्तु जिसने पहले कभी नहीं खाया है उसके लिए इसे पहली बार खाना एक सज़ा हो जाता है .........परन्तु यदि आपने इसे खाना सीख लिया तो आप इसके दीवाने हो जाते हैं .......... मूलतः यह राजस्थान का भोजन है .....  इसकी history भी मजेदार है ........बताया जाता है की राजस्थान के राजपूत योद्धा बाजरे के आटे में नमक डाल के गूंद लेते थे और रेगिस्तान में रेत में दबा दिया करते थे .......... उन्हें पता होता था की भोजन रेगिस्तान में कहाँ कहाँ दबा हुआ है ........ कई बार तो वो कई कई साल पुरानी बाटियाँ इसी तरह जमीन में गाड़ी हुई .......ज़रूरत पड़ने पे निकाल कर खाते थे .......ये सिर्फ गर्म रेत में ही पक जाती हैं ........ तब इन्हें झाड के देसी घी में डुबा दिया जाता था और ये खाने लायक हो जाती थी ......... युद्ध काल का भोजन धीरे धीरे राजस्थानी समाज में दैनिक खान पान में शामिल हो गया .....इसमें आम तौर पे दो तीन या ज़्यादा किस्म के आटे मिला कर बनाया जाता है जिसमे मुख्यतः गेहूं , बाजरा , ज्वार , जौ , चना प्रमुख हैं .........  इसे उपलों की आग बना के उसपे सेक के फिर उस गर्म राख में दबा  दिया जाता है और ये आधे घंटे में सिक के तैयार हो जाती हैं .........नए ज़माने में हम लोग इसे आजकल oven में बनाते हैं ........ राजस्थान में इसे आम तौर पे दाल या गट्टे की सब्जी के साथ खाया जाता है और इसके साथ कत्त और चूरमा ये दो sweet dishes भी बनायीं जाती हैं ....उनका ज़िक्र मैं अगली पोस्ट में करूंगा .......... 

मज़े की बात ये है की बाटी का एक भोजन के रूप में  देश के अन्य हिस्सों में विस्तार ....इसे समझना एक बड़ा मजेदार विषय है ........ कुछ dishes कुछ ख़ास areas की signature dishes होती हैं .......जैसे की दाल बाटी राजस्थान की है ........ पर पड़ोस में हरियाणा , पश्चिमी उत्तर प्रदेश , पंजाब , हिमाचल , या मध्य प्रदेश में नहीं खाई जाती है ......... पर राजस्थान से 1000 km दूर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में जा कर पुनः प्रकट हो जाती है ........जी हाँ बाटी पुरबियों को भी बहुत ज़्यादा पसंद है ......... अलबत्ता यहाँ इसके साथ चोखा खाने की परम्परा है ....... चोखा माने उपले की धीमी आंच पे आलू , बैगन , टमाटर इत्यादि भून कर उन्हें mash कर उसमे ढेर सारा प्याज , लहसुन , अदरक , हरी मिर्च मिक्स कर लिया जाता है .......ध्यान दीजिये इसे छौंक नहीं लगाया जाता ........सब कुछ कच्चा ही  ........ और फिर उसमे डालते हैं कच्चा सरसों का तेल ........... चोखा ......इसका शाब्दिक अर्थ है तीखा .....करारा ........ सरसों का तेल डालने से इसमें तीखापन या करारा पन आता है .......... पर यही झोल हो जाता है .......नया आदमी कच्चा सरसों का तेल बर्दाश्त नहीं कर पाता .......एकदम नया सा फ्लेवर जो आता है ......पर जान लीजिये , चोखे का असली खवैय्या बिना तेल का चोखा खा नहीं सकता .......  और चोखा खा के अगर नानी याद न आये तो काहे का चोखा .......यूँ बाटी के साथ दाल भी बनायी जाती है ......पर पूर्वांचल में असली खवैया बाटी चोखे के साथ ही खायेगा ....दाल को हाथ नहीं लगाएगा .......चोखा अपने आप में एक complete dish  है ...... 

मैंने ये जाने की कोशिश की कि बाटी के चलन में ये gap क्यों है ...... यानि राजस्थान के बाद सीधे पूर्वांचल में क्यों प्रकट होती है .......... पश्चिमोत्तर से गायब क्यों है ....... इसका कारण मुझे ये समझ में आया की मध्य काल में जब मुस्लिम आक्रमण शुरू हुए तो राजस्थान के बहुत से लोग migrate हुए .....इतिहास में दर्ज है की पहला जत्था राजस्थान से चल कर प्रतापगढ़ आया था और फिर वहीं बस गया ........ वही राजस्थानी राजपूत अपने साथ बाटी ले कर आये ......... इसके बाद ये migration सदियों तक चलता रहा और बाटी भी प्रतापगढ़ से आगे बढती हुई पूरे पूर्वांचल समेत बिहार तक चली गयी ......... और स्थानीय लोगों का प्रिय भोजन बन गयी .........परन्तु बंगाल की सीमा पे जा के पुनः रुक गयी ........

क्रमशः ............ अगले अंक में .....बाटी की लोकप्रियता का प्रमुख कारण क्या है  ???????? आज भी राजस्थान और पूरब के लोगों का चेहरा क्यों खिल उठता है बाटी का नाम आते ही ???????

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