Saturday, August 9, 2014

8 August 2014

बांझों का मुहल्ला था .........सब बाँझ रहती थीं उसमे ...........एक बेऔलाद आदमी के घर चराग रौशन हुआ ......... लाख मनौतियाँ माँगी .........देवी देवता पूजे .........पीर मज़ार सब पूजे .........

इश्वर की कृपा हुई ......बीवी ने बताया की वो उम्मीद से है ........ घर वाले सब ख़ुशी से झूम उठे .......... 
पडोसी जल उठे ....... हो ही नहीं सकते ...... अरे इस बाँझ के कैसे हो सकता है .......झूठ है .......हो ही नहीं सकता .......

कुछ दिन में दिखने लगा ......... अरे हवा है ........हवा भरी है .......देखना कुछ नहीं निकलेगा ......... मर जाएगा .....अन्दर ही मर जाएगा .......

पैदा हुआ ........ तो बोले बचेगा नहीं .........किसी काम का न होगा ........निकम्मा होगा .......नालायक होगा ....नकारा .......... कुछ नहीं करेगा ......मर जाएगा .........

तरस रहे थे एक अदद औलाद के लिए ........ यूँ सूना करते थे की बुढापे का सहारा होते हैं बच्चे ........ उन्ही से रोशन होते हैं घर ....उन्ही से है सब रौनक ........

दिनों दिन बढ़ने लगा ....... पर पड़ोसियों को न दिखता था बढ़ता हुआ ........ महीने भर बाद ही पूछने लगे , अरे क्या कर लिया ? कितनी सेवा करता है माँ बाप की ? बस .....आ गए अच्छे दिन ? अरे कुछ नहीं करेगा .........

पूरा मुहल्ला इंतज़ार कर रहा है ........कब भागों वालों का लड़का मरेगा ......... उसकी मौत के दिन का इंतज़ार कर रहे हैं सब ....... अल्लाह करे मर जाए .........

भागों वालों को भरोसा है की कामयाब होंगें ........अच्छे दिन ज़रूर आयेंगे ......... सबके घर रोशन होंगें ........आबाद होंगे .........दुआ करते हैं की अच्छे दिन आयें सबके ......

देखते हैं की किस्मे ज़्यादा जोर है .......दुआ देने वालों में या बद्दुआ देने वालों में ......

congi , commi , आपिये अल्लाह से रोज़ मनाते हैं की मोदी फेल हो जाए .......... हमें ये जिद है की पास हो के रहेंगे ........ देखते हैं किसकी दुआ में ज्यादा जोर है ........

15 अगस्त का इंतज़ार है बेसब्री से ........

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