Monday, July 14, 2014

एक बार एक मारवाड़ी सेठ ने भोजनालय खोल दिया . चल निकला . मारवाड़ी धार्मिक किस्म का आदमी थी . भगवान् से डरता था . उसने सोचा की इसी में पुण्य कमा लिया जाए . सो उसने no profit no loss पे खाना खिलाना शुरू कर दिया . समय के साथ महंगाई बढ़ी . बेचारे सेठ को गरीब जनता पे दया आ गयी . उसने दाम नहीं बढाए , अपनी जेब से ही हज़ार रु रोज़ ढाबे में डालने लगा . यानि सब्सिडी दे दी . महंगाई और बढ़ी . पर उसने दाम फिर भी न बढाए . सब्सिडी बढ़ गयी . अब थाली सेठ को दस रु में पड़ती थी , पर बेचारा धर्म भीरु , बेचता था 6 रु में . महंगाई बढ़ती गयी , पर उसने दाम न बढाए . सब्सिडी बढाता गया . उधर सस्ते खाने पे लोग टूट के पड़ रहे थे . भीड़ बढ़ती जा रही थी . खाने की क्वालिटी रोज़ गिर रही थी . दाल पानी जैसी हो गयी थी . खाने के नाम पे पतली खिचडी परोस रहा था . किसी ने कहा दाम बढ़ा लो पर खाना बढ़िया खिलाओ ........पब्लिक उखड गयी . नहीं . पहले ही बहुत महंगाई है . ऊपर से तुम भी दाम बढाओगे . सेठ बोला , पैसा नहीं है , कैसे चलाऊँ ? पब्लिक बोली , अन्य विकल्प टटोल लो . सब्सिडी बढ़ा दो , दाल बेशक और पतली कर दो ...... मक्खियाँ भिनक रही हैं , भिनकने दो . कीड़े पड़ गए हैं ....पड़ने दो ....पर दाम न बढ़ाओ . घर द्वार बेच के ढाबे में पैसा लगाओ पर दाम न बढ़ाओ .

सुना है की रेलवे यात्री भाड़े में 32000 करोड़ की सब्सिडी देती है . आंकडा यदि गलत हो तो सुधार दीजिएगा . यानि माल भाड़े से जो पैसा आता है उसे यात्री भाड़े में लगा देती है . इसका मतलब ये हुआ की जब हम दिल्ली से बनारस जाते हैं तो उस यात्रा का लागत मूल्य लगभग 700 रु है पर रेलवे हमसे सिर्फ 350 रु लेती है . मुझे लगता है की हमें उस यात्रा के पूरे पैसे देने चाहिए . जिस से की रेलवे सब्सिडी वाले धन को infrastructure में लगा सके . नयी पटरियां बिछाए . जर्जर पटरियों को बदले . नए रेल डिब्बे बानाने के और कारखाने लगें जिस से की हज़ारों नयी रेलगाड़ियाँ चलें .........आज जो यात्रा 12 घंटे में होती है वो 7 घंटे में पूरी हो ....... आज जो बेचारे लटक के जाते हैं , भूसे की तरह ठूंस के जाते हैं , फर्श पे सो के जाते है , शौचालय के सामने बैठ के जाते हैं ........वो इज्ज़त से चल सकें ........

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