Thursday, July 17, 2014

दोस्तों , इस पोस्ट की भाषा के लिए कृपया मुझे क्षमा करेंगे . 

कुत्ता पाला है कभी ? या कभी कुत्तों को देखा है ? देखा माने observe किया है ? मोहल्ले की कोई कुतिया जब heat में आती है तो क्या होता है ? शहरी लोग बेचारे जीवन के बहुत मजेदार दृश्यों से वंचित रह जाते हैं ............ हाँ तो साहब मोहल्ले की कोई कुतिया जब heat में आती है तो क्या होता है ? अजी जनाब क्या दृश्य होता है .......पूरा मुहल्ला इराक बन जाता है ......... साले देस भर के कुत्ते जमा हो जाते हैं ....... वो आगे आगे कुत्ते पीछे पीछे ..........चिल्ल पों मची रहती है ...... हमारे पास भी एक कुत्ता होता था ......पिता जी उसे बाँध दिया करते थे ....... सोच लीजिये बेचारे के साथ कितना बड़ा अन्याय होता रहा होगा ........रोता था ......चीखता था ......हुआँ हुआँ करके रोता था ......इतना रोता था की रात भर सोने नहीं देता था ......... अंत में पिता जी तंग आ जाते और खीज के उसे खोल देते .......... जा भाई जा ......जा साले जा .....मर ......जा ले ऐश .....पर अब आना मत लौट के ........ जा . और वो ऐसे भागता जैसे जेल से छूटा हो ....... और फिर लौटता हफ्ते भर बाद ..........पर अल्लाह बड़ा ही दयालु है और अल्लाह सब जानता है .......... उसने सिस्टम बड़ा अच्छा बनाया है ........ पहला ये की गाँव भर में बस 4-6 कुत्तियाँ ही होती हैं .......दुसरे साल भर में सिर्फ दो बार ही heat पे आती हैं ....... हफ्ते भर के लिए .........इसलिए गाँव में छोटा मोटा दंगा ही होता है .......पूरा मुल्क इराक बनने से बच जाता है ......सोच के देखिये की गाँव में 2-400 कुत्तियाँ हों और हमेशा heat पे ही रहे .....क्या होगा ?

इस पोस्ट को आगे पढ़ते हुए ये कुत्तों वाला किस्सा याद रखियेगा .........माफ़ी एक बार और मांग लेता हूँ ...... कान पकड़ के ........

हुआ ये है की स्कूल में 13 साल के लड़के ने 13 साल की लड़की का rape कर दिया है ........ अभभावक बंधु स्कूल में घुस के बवाल काट रहे हैं ......तोड़ फोड़ कर रहे हैं ....... मार पीट कर रहे हैं ........ कहते हैं की हमारे बच्चे स्कूल में सुरक्षित नहीं हैं ....... प्रिंसिपल और स्टाफ को फांसी पे लटकाओ ........ उन ने हमारी लड़की की रखवाली नहीं की ........ वाह सुनील बाबू ..........बढ़िया है .

20 साल मैंने स्कूल ही चलाया है ........अब श्रीमती जी एक बड़े स्कूल की प्रिंसिपल हैं ........ आज से 25 साल पहले जब स्कूल शुरू किया था तो बोल दिया था .....देखो भैया .....न तो MA Bed हूँ , न कोई मान्यता है , न बिल्डिंग है और न affiliation ......न कोई certificate मिलेगा न TC mark sheet ......... सिर्फ और सिर्फ पढाई मिलेगी ....... जिसको पढवाना है पढ्वाओ वरना ऐसी की तैसी कराओ .......भाई लोगों ने उपाय निकाल लिया ......बच्चों का नाम लिखवा देते थे प्राइमरी स्कूल में और भेजते थे मेरे पास ......पेड़ के नीचे बैठा के पढाता था .........अपनी शर्तों पे ....अपने हिसाब से ........ आगे चल के जब पूरा स्कूल बन गया तो सरकार की लाल फीता शाही और अभिभावकों के दबाव में पढाई तो घुस गयी तेल लेने और खाली रजिस्टर भरे जाने लगे ....... हमने हाथ खड़े कर दिए .......भैया पढ़ा सकते हैं ....रजिस्टर किसी और से भरवा लो ....... आज धर्म पत्नी एक बहुत बड़े स्कूल की प्रिंसिपल हैं ....127 किस्म की फाइल और रजिस्टर भरने पड़ते हैं ........ स्कूल की मास्टरनियां पढाई के नाम पे सिर्फ और सिर्फ copy check करती हैं ....यदि बच्चे ने बिंदी की भी गलती की है तो उसे भी लाल पेन से मार्क करना है .........एक भी गलती छूटनी नहीं चाहिए ........ प्रिंसिपल और अभिभावक खाल उतार लेंगे .........

अब नया बवाल आ गया ........अबे छोडो पढाई और कॉपी किताब ......पहले ये देखो की कौन कहाँ जा रहा है .........क्या कर रहा है ........ एक बड़े स्कूल में कम से कम 100 ऐसी जगहें और कोने होते हैं जहां कोई कुत्ता किसी heat में आई कुतिया पे चढ़ जाए

.........sexual maturity जो बच्चों में किसी ज़माने में 15-16 साल की उम्र में आया करती थी आजकल 9-10 साल में आ जा रही है ........ TV और संचार माध्यमों में नंगा नाच चल रहा है और सिर्फ और सिर्फ sex ही परोसा जा रहा है .......खुल के .......बेशर्मी से .........उस नंगे नाच को बच्चे दिन रात देख रहे हैं ....... 10 साल की लड़की boyfriend खोजने लगती है ........ संस्कार गया तेल लेने ....... ब्रह्मचर्य की बात मत करो , condom का महत्व पढाओ ......... भैया स्कूल वो मुहल्ला बन गया है जहां 2-400 कुत्तियाँ साल भर heat में घूम रही हैं ........ और 4-600 कुत्ते हैं.........जीभ निकाले ........ सूंघते.......... पीछे पीछे ........ प्रिंसिपल आदमी के बच्चे को तो सम्हाल लेगी ...... कुत्ते के बच्चे को कौन अगोर सकता है .......पढ़ाओगे या कुत्ते अगोरोगे ............

माफ़ी फिर मांग लेता हूँ कान पकड़ के .........




एक मित्र हैं ........ Pranav Tripathi जी ....... उन्होंने टिप्पणी की है एक पोस्ट पे की पुराने ज़माने की सब्जियां और अनाज बहुत स्वादिष्ट होता था ....अब का खाना तो एकदम स्वाद हीन हो गया है . ........ एक और मित्र हैं हमारे .......भाई prem prakash जी राज घाट वाले ....... एकदम बड़के गांधीवादी हैं .....जब गान्ही बाबा 1948 में स्वर्ग सिधारे तो उनकी आत्मा निकल के बहुत दिन यूँ ही भटकती रही .........फिर जब 1970 में prem भैया जन्मे तो उनमे प्रविष्ट हुई ........ तब जा के गान्ही बाबा को मोक्ष प्राप्त हुआ .........prem भैया को भी बड़ी दिक्कत है शहरों से ......शहरी करण से .......industrialization से .......industry शब्द से तो इन्हें सख्त नफरत है .......किसान और खेती के तो बड़े हिमायती हैं ........इनका दिल आजकल किसान के लिए ही धड़कता है ..........आत्मा गाँव में भटकती है इनकी .......वो अलग बात है की खुद शहर में रहते हैं , खुरपी कुदाल पकड़े बीसियों साल बीत गए ....... गेहूं और जौ का पौधा पहचान नहीं सकते ........ पर राशन कार्ड में कृषक लिखवाये फिरते हैं ........ गोरक्षा पे लम्बे लेख लिखते हैं पर खूंटे पे एक भी बैल नहीं है इनके ........... न जाने अपने बछड़ों का क्या करते हैं ..........जब से मोदी ने घोषणा की है की 100 smart city बसेंगी , इनका BP sugar हीमोग्लोबिन सब एक साथ बढ़ गया है .........

उधर pranav tripathi हैं की पहले वाला स्वाद खोज रहे हैं टमाटर में .............. भैया tripathi जी ......जिस टमाटर की बात करते हो न , उसे देसी टमाटर कहते थे ...... पेड़ पे 8-10 ही लगा करते थे ......एकदम खट्टा होता था ....पर सुबह तोड़ो तो शाम तक गल जाता था ......अगले दिन सुबह सड जाता था ......फेंकना पड़ता था .........उपज भी थोड़ी सी ही होती थी .......पर उस जमाने में गिने चुने लोग ही टमाटर खाते थे ...वो भी साल में एक दो महीने .......बाकी को तो नून भात भी नसीब न होता था .......फिर कृषि वैज्ञानिकों ने hybrid बीज विकसित किये ....... नए रंग , नए स्वाद , नए रूप वाले , नए आकार वाले ....... वो जिनका छिलका मोटा है ....वो जिनकी shelf लाइफ है ........ऐसा टमाटर विकसित किया जो महीना भर भी फ्रिज से बाहर पडा रहे तो सड़े न ......और उपज ....पहले से 100 गुना ज़्यादा ........पर इन फसलों पे हर चौथे दिन कीट नाशक और फफूंदी नाशक का छिडकाव होता है ..........और झोंक के डाली जाती हैं रासायनिक खादें ........ भैया ये कृषि नहीं है .......इसे industrial agriculture कहते हैं ......औद्योगिक खेती ....... भैया pranav tripathi जी , जिस खेती को आप याद कर रहे हैं न उसे organic कृषि कहते हैं ....... अगर वाकई उसपे वापस चले गए न , तो टमाटर या कोई भी सब्जी , 500 रु किलो भी न मिलेगा ....... ये एक कडवी सच्चाई है .....यूँ भाषण देना मुझे भी बहुत अच्छा लगता है आर्गेनिक खेती पे ....... गाँव मुझे भी बहुत अच्छा लगता है पर रहता मैं भी prem भैया की तरह शहर में ही हूँ ........industry को आप जितना मर्ज़ी गरिया लीजिये ....पर अगर वो न रही तो भूखे मर जायेंगे हम आप , prem भैया . और गान्ही बाबा की तरह लंगोटी में ..........

क्रमशः ............




चर्चा चल रही है आर्गेनिक खेती की .....pranav त्रिपाठी टमाटर में पहले वाला स्वाद खोज रहे हैं .......भैया pranav जी ......मिल तो सकता है , पर उसके लिए आपको थोड़ी देह हिलानी पड़ेगी ....... थोडा सा कष्ट उठाना पडेगा ...... है हिम्मत ? करोगे ? अपना खुद का kitchen गार्डन बनाना पडेगा ....... जगह ज़मीन का रोना मत रोने लगना अब ........ शहर में रहते हो ? छत है ? उसपे भी बन जाता है ........गमले , डब्बे , कोई पुराना बक्सा , लकड़ी की पेटी , कुछ भी चलेगा ...... उनमे मिटटी भर के डालिए गोबर की खाद , और लगा दीजिये सब्जियों के देसी बीज ........और रोजाना उन पौधों के साथ कुछ समय बिताइए .......साहचर्य ..... उनसे बातें कीजिये , उनकी care कीजिये , निराई गुडाई कीजिये .......पानी दीजिये ......कोई रासायनिक खाद नहीं कोई कीट नाशक नहीं ....... कीड़े लगते हैं तो लगने दीजिये ....कीड़ा आदमी से ज़्यादा समझदार होता है ....वही खाता है जो खाने लायक होता है ..........जिस फल में जितना हिस्सा कीड़े का है उसे काट दीजिये , बाकी का पका लीजिये ........यकीन मानिए 10* 10 फुट की छत पे भी आप इतनी सब्जी उगा सकते हैं जो आपके घर के लिए पर्याप्त होगी ......हाल ही में मैंने एक ऐसे सज्जन का roof top kitchen garden देखा जिसमे वो मोहल्ले भर के लिए सब्जी उगाते हैं .........

थोड़ा कष्ट तो होगा पर स्वाद वही होगा ....पुराने वाला ........

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