Thursday, July 17, 2014

मेरी ये पक्की धारणा है की एक पत्रकार को किसी भी राजनैतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक भौगोलिक पूर्वाग्रहों से मुक्त रहना चाहिए ......... यहाँ तक की धार्मिक पूर्वाग्रहों से भी ........साहित्यकार और पत्रकार को कभी भी खुद को किसी दायरे में सीमित नहीं करना चाहिए ......... बाँधना नहीं चाहिए ....... राजनेताओं की बात अलग होती है ......उन्हें अपने वोटर को हर हाल में खुश रखना होता है .....उन्हें हर हाल में popular sentiment के साथ ही बहना पड़ता है ....... पर पत्रकार , साहित्यकार और सन्यासी .......इनको कभी अपने पाँव में बेडी नही पहननी चाहिए .......... मेरा prem prakash जी से हमेशा एक ही झगडा रहता है ........ मैं उनसे हमेशा कहता हूँ की या तो खुद को पत्रकार लिखना बंद कर दो या फिर निष्पक्ष हो जाओ ......... राजनैतिक पूर्वाग्रह त्याग दो .......

मैं खांटी फेस्बुकिया हूँ , कोई पत्रकार नहीं ....... यूँ कहने को मोदीभक्त का ठप्पा लगा है मेरे ऊपर ........ पर जब राहुल गाँधी ने poverty is a state of mind ........ वाला बयान दिया तो मैंने अपनी वाल से खुल के उसका समर्थन किया था .......मोदी ने ज अरुणाचल जा के nido की ह्त्या का मामला उठाया तो मैंने उनकी खूब आलोचना की थी ........ये चिंके खुद यहाँ north india में आ के सबसे अलग थलग रहते है और फिर victim प्ले करते हैं .....खुद साले एक नंबर के रेसिस्ट हैं और आरोप हमारे ऊपर लगाते हैं ........

जब प्रशांत भूषण ने कश्मीर वाला बयान दिया था तो मैंने उनको महीनों गरिआया .......... पानी पी पी के गरिआया ...... वो इसलिए की उन्होंने वो बयान एक राजनेता की हैसियत से दिया था ........ पत्रकार की हैसियत से नहीं ...........वैदिक ने यदि कश्मीर पे कोई बयान दिया है ( यदि दिया है.......20 सेकंड की youtube क्लिप्पिंग से कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए . पूरा इंटरव्यू देखिये फिर निष्कर्ष निकालिए ) तो एक पत्रकार की हैसियत से दिया है ......... मैंने पश्चिम के बहुत से पत्रकारों को पढ़ा है जो अपने देश की स्थापित राजनातिक मान्यताओं के खिलाफ बड़े मुखर हो के लिखते है और वहाँ की society उनके इस अधिकार का सम्मान करती है ....... कोई हो हल्ला नहीं मचाती .....

किसी पत्रकार के लिए ये ज़रूरी नहीं की वो अपने देश के पोपुलर पोलिटिकल या socio religious सेंटिमेंट के अनुरूप ही लिखे ........international borders मछुआरों के लिए होते हैं ........समंदर की मछली किसी बॉर्डर की परवाह नहीं करती ......उसे करनी भी नहीं चाहिए .........पत्रकार , साहित्यकार और सन्यासी को समंदर की मछली बन के ही रहना चाहिए 

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